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________________ स्वास्थ्य, प्रसन्नता और प्रेक्षा बालक के प्रसन्न चेहरे में परमात्मा के दर्शन होते हैं। यह वाक्य जहां प्रसन्नता की महत्ता को दिग्दर्शित करता है, वहां परमात्मा के आनंद स्वरूप की ओर भी संकेत करता है। परमात्मा पद को प्राप्त करने का एक मार्ग है-प्रसन्नता। प्रसन्नता भाव या एक अवस्था है। जो निर्मल अवस्था में आ जाता है वही प्रसन्न होता है। प्रसन्नता का दूसरा अर्थ है-स्वच्छता। प्रसन्न आकाश को निर्मल स्वच्छ आकाश कहा गया है। व्यक्ति की चेतना आकाश की तरह निर्मल होती है किन्तु व्याधि, आधि, उपाधि से उसमें मलीनता आ जाती है। उसका परिणाम है-अस्वास्थ्य। अस्वास्थ्य के अनेक रूप हैं-शारीरिक, मानसिक और भावात्मक । अस्वास्थ्य के निवारण से प्रसन्नता को प्रकट करने का अवसर मिलता है। प्रसन्नता और हर्ष में मौलिक अन्तर है। प्रसन्नता चित्त की निर्मलता है। हर्ष मन का आवेग है। हर्ष का कारण होता है, फिर चाहे वह भौतिक वस्तु हो अथवा अभौतिक हो, घटना और वस्तु के परिवर्तन के साथ चित्त में परिवर्तन होने लगता है। प्रसन्नता में बाह्य वस्तु का सीधा सम्बन्ध नहीं रहता। आधि, व्याधि, उपाधि से उत्पन्न अस्वास्थ्य का निराकरण कैसे किया जाए? जो किसी कारण से उत्पन्न होता है, उसके निवारण से वह दूर हो जाता है। शरीर स्थूल है। उस पर उतरने वाली व्याधि स्पष्ट व्यक्त होती है। स्थूल रूप से होने वाली व्याधि में मूल रूप में आधि और उपाधि भी निमित्त बनती है। कोई भी अस्वास्थ्य सबसे पहले भावों में, भावों से मन में, और मन से शरीर पर आता है। स्वास्थ्य की पहली पहचान प्रसन्नता है। प्रसन्नता चित्त की निर्मलता का प्रतीक है। स्वास्थ्य के सम्बन्ध में जितनी भी परिभाषायें उपलब्ध हैं उनमें विधायक की अपेक्षा निषेधात्मक अभिव्यक्ति अधिक है। रुग्णता का अभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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