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प्रेक्षा की अर्थ यात्रा
है। प्रेक्षा संयम है। प्रेक्षा तप है । प्रेक्षा ब्रह्म है। प्रेक्षा सतत् प्रवाही शीतल गंगा है। जो जीवन के पाप व ताप का हरण कर वृत्तियों को शीतल और शांत बना देती है
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प्रेक्षा धर्म का प्रायोगिक स्वरूप है। प्रेक्षा व्यवहार शुद्धि की प्रक्रिया है जीवन विकास, भाव परिवर्तन और व्यक्तित्व निर्माण की ओर अग्रसर करने में प्रेक्षा का अपना उपक्रम है। आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षा के प्रयोगों को विज्ञान की कसौटी पर कस कर उसको सार्वजनिक हितेषि बनाया है ।
जीवन-विज्ञान शिक्षा प्रेक्षा का एक नया अवदान है। जीवन-विज्ञान जीने की कला का प्रायोगिक स्वरूप है। शांत, सुखद और श्रेष्ठ जीवन के शिक्षण और प्रशिक्षण से समाज में दिव्यता प्रकट हो सकती है ।
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी एवं युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ का यह स्पष्ट अभिमत है कि वर्तमान की शिक्षा-प्रणाली खराब नहीं अपितु अपूर्ण है । यदि शिक्षा-प्रणाली गलत या खराब होती है तो इस शिक्षा द्वारा निकले
स्नातक निपुण और श्रेष्ठ कैसे होते ? डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, विभिन्न विषयों के विज्ञानी कैसे अपने-अपने विषयों में अग्रसर होकर नए-नए कीर्तिमान स्थापित करते हैं । यह कौशल शिक्षा की बदौलत ही है । शिक्षा का अपना कोण है, अपनी आवश्यकताएं, अपनी दृष्टि है। उसके अनुरूप ही उसका विस्तार होता है। शिक्षा को ग्रहण करने वालों की भी अपनी अपेक्षाएं होती हैं। शिक्षा और शिक्षार्थी, शिक्षा संस्थान और सरकार ऐसा वृत्त बन गया है जिससे व्यक्ति और समाज का कल्याण और अकल्याण का प्रश्न नहीं । बल्कि संस्थान और सरकार स्वयं के हितों के सम्बन्ध में अधिक सोचती है। जिसका परिणाम यह होता है कि शिक्षा सत्ता को स्थिर एवं हथियाने के उपयोग में आने लगी है ।
शिक्षा को संस्थानों के व्यवसाय और सरकार से मुक्त रख कर स्वतंत्र रूप से व्यक्तित्व के निर्माण और भावात्मक विकास के लिए प्रयुक्त किया जाए तो सृजन का नया दौर प्रारम्भ हो सकता है। जीवन-विज्ञान शिक्षा में स्वतंत्र विद्या के रूप में प्रारम्भ होकर जीवन को सर्वांगीण बनाने में सहायक बनने का प्रयत्न कर रहा है।
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