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प्रेक्षा जीवन का विज्ञान
६१ कायोत्सर्ग के इस प्रयोग को कोई किसी भी समय कर सकता है, लेकिन रात्रि शयन के समय करने पर विशेष लाभदायक हैं। कायोत्सर्ग की विधि
बिस्तर या पट्ट पर आंख मूंद कर लेटें। पैर मिले हुए श्वास भरते हुए हाथों को मस्तक से ऊपर ले जाकर खींचाव दें। श्वास छोड़ते हुए हाथों को शरीर के बराबर ले आएं। इस प्रकार तीन बार करें। शक्ति की पूरी तरह शिथिल छोड़ दें। शरीर में अकड़न न रहे। एक-एक अवयव को शिथिलता का सुझाव दें, शरीर को शिथिल छोड़ दें.........
चित्त को श्वास पर केन्द्रित करें | अनुभव करें श्वास के साथ शान्ति शरीर के प्रत्येक अवयव तक पहुंच रही है। श्वास छोड़ें तब शान्ति चारों और फैल रही है। रोम-रोम में शान्ति व्याप्त हो रही है। मैं शान्त और स्वस्थ हो गया हूं। जब तक निद्रा में प्रवेश न हो जाए प्रयोग जारी रखें। ___ कायोत्सर्ग के इस प्रयोग से शरीर और मन की जड़ता नष्ट होती है। भय और दुःस्वप्न दूर होते हैं, स्वभाव परिवर्तन और स्मृति का विकास होता
प्रेक्षा का तीसरा प्रयोग है-दीर्घश्वास प्रेक्षा
श्वास-प्रश्वास जीवन का आधार भूत तत्त्व है। दीर्घश्वास-प्रेक्षा द्वारा प्राणवायु अधिक मात्रा में उपलब्ध होती है जिससे रक्त शोधन सुगमता से होता है। रक्त शुद्धि से शरीर के दोष दूर होते हैं, व्यक्ति स्वस्थ बनता है। श्वास-प्रेक्षा से व्यक्ति में जागरूकता बढ़ती है। श्वास-प्रेक्षा से मन शान्त और विचार एकाग्र होने लगते हैं। श्वास-प्रश्वास को दीर्घ करने के लिए, धीरे-धीरे श्वास लें धीरे-धीरे श्वास-प्रश्वास छोड़ें। दोनों क्रियाओं में समय बराबर रहे। लेकिन श्वास क्रिया को बहुत ही कम लोग सही प्रकार से कर पाते हैं। प्रेक्षा शिविरों में आने वाले व्यक्तियों पर परीक्षण करने से पता लगा कि सौ में से अस्सी व्यक्ति श्वास क्रिया को सम्यग नहीं करते हैं। जिससे शारीरिक और मानसिक बीमारियां भोगनी पड़ती हैं। सही श्वास-श्वास क्रिया को जानने के लिए छोटे बच्चे की श्वास-प्रश्वास क्रिया को देखना होगा। वह श्वास लेते समय अपने पेट की मांसपेशियों को फैलाता है। छोड़ते समय सिकोड़ता है। सही श्वास क्रिया करते समय प्रत्येक व्यक्ति के पेट की स्थिति
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