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प्रज्ञा की परिक्रमा
व्यक्ति प्रथम मिलने वालों से, अनायास ही पूछ लेता है । आप कौन हैं? कहां से आये हैं ? क्या करते हैं ? किन्तु अपने आप से कोई नहीं पूछता कि मैं कौन हूं, कहां से आया हूं, क्या करता हूं ।
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जगत् का समस्त ज्ञान विज्ञान अपने में समेटे होते हुए भी व्यक्ति स्वयं के बारे में अनभिज्ञ है। स्वयं को जानने का सरल मार्ग प्रेक्षा ध्यान है। दूसरे शब्दों में इसे हम यों भी कह सकते हैं, स्वयं द्वारा स्वयं का आत्म-निरीक्षण प्रेक्षा- ध्यान है। प्रेक्षा-ध्यान का फलित है- शारीरिक, मानसिक और भावात्मक आवेगों पर संयम । इससे व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है। प्रेक्षा की इस पद्धति में यौगिक क्रियाएं आसन, प्राणायाम, कायोत्सर्ग प्रेक्षा-ध्यान, अनुप्रेक्षा आदि विधियों का समावेश किया गया है। प्रेक्षा की इन विधियों को जानने की उत्सुक्ता, जिज्ञासु - मानस में होना स्वाभाविक है। प्रेक्षा में प्रवेश की अनेक विधियां हैं। सभी विधियों का विश्लेषण यहां संभव नहीं है उनमें से कुछ एक विधियों की प्रायोगिक प्रक्रिया प्रस्तुत है ।
प्रेक्षा का पहला प्रयोग है महाप्राण ध्वनि
महाप्राण ध्वनि से मस्तिष्क के कोष सक्रिय होते हैं, विचारों की चंचलता शांत होती है। ध्यान का वातावरण निर्मित होता है। दीर्घकाल अभ्यास से स्मरण शक्ति विकसित होती है। महाप्राण ध्वनि के अभ्यास के लिए रीढ़ की हड्डी को सीधा रख सुख पूर्वक बैठ नाक से श्वास भर होठ को बन्द करें, नाक से भंवरे की तरह गुंजारव करते हुए इस प्रक्रिया को ६ बार दोहराए । .मं. ...मं... ...मं... .......
प्रेक्षा का दूसरा प्रयोग है - कायोत्सर्ग
कायोत्सर्ग शरीर की चंचलता दूर करता है। उससे फलित होता हैं शिथिलीकरण और स्वयं की अनुभूति । शिथिलीकरण से शरीर और मन में हल्कापन प्रकट होता है । हल्केपन का अनुभव ही स्वयं की अनुभूति की झलक है । जिससे व्यक्ति शरीर और स्व का भेद अनुभव करने लगता है। यह भेद ही आसक्ति के बंधन को तोड़ता है। व्यक्ति मानसिक और भावात्मक स्तर पर तनाव मुक्ति अनुभव करता है।
कायोत्सर्ग के पूर्ण प्रयोग में ४५ मिनट लगाते हैं, परन्तु कायोत्सर्ग का लघु प्रयोग ५ मिनट में भी किया जा सकता है। जो अनिद्रा, रक्त चाप और क्रोध शमन के लिए अक्सीर है।
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