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________________ मांसाहार बनाम शाकाहार ५३ मासांहारी प्राणी के यकृत व गुर्दे भी मनुष्य की अपेक्षा बड़े होते हैं। मांस हजम करने के लिए यकृत को पित्त अधिक स्रवित करना होता है मांसाहार के बिना में जो धारणाएं बनी हुई हैं, वे भी भ्रान्त हैं। मांसाहार से शरीर बलिष्ठ, वीर्यवान् और तेजस्वी बनता है, इसलिए अण्डा, मछली और मांस खाओं। उससे शक्ति और बुद्धि विकसित होगी। यह बात भी मिथ्या और अवैज्ञानिक है। मांसाहारी शाकाहारियों के परीक्षण से यह सिद्ध हुआ है कि शाकाहार शरीर के अनुकूल, शक्तिवर्धक और बौद्धिकता को बढ़ाता है। इन सारी स्थितियों की स्पष्टता से मनुष्य मांसाहारी प्राणी नहीं है। मनुष्य ने ज्ञान का ज्यों-ज्यों विकास किया, उसने अपने प्रबुद्ध विवेक से मांसाहार का परित्याग किया है। किसी भी भोजन की गुणवत्ता प्रोटीन, विटामिन एवं शक्ति (क्लोरीज ) से आंकी जाती है। मांसाहार प्रोटीन, विटामिन एवं शक्ति से युक्त होते हु भी दुष्पाच्य है। दूसरे जिन स्रोतों से मांस प्राप्त किया जाता है वे भी कितने स्वस्थ व सबल होते हैं ? दुर्बल एवं रुग्ण प्राणियों का मांस भी कितना पीड़ाकारक एवं रुग्णता को बढ़ा सकता है। शाकाहार में भी दाल, सोयाबीन, दूध आदि पदार्थों में भरपूर प्रोटीन प्राप्त होता है। शाकाहार में विभिन्न द्रव्यों से प्राप्त प्रोटीन, विटामिन एवं शक्ति को शरीर सरलता से पचाकर शरीर का अंग बना लेता है । पनीर, सेब, दाल, चोकर आदि में विटामिन, प्रोटीन शक्ति भी मांस से कम नहीं होती है। बल्कि मांस में अतिरिक्त यूरिया अम्लादि अधिक होते हैं जिसकी आवश्यकता शरीर को इतनी नहीं। गुर्दों को उन्हें अधिक श्रम कर बाहर फेंकना होता है। अतिरिक्त श्रम से वे दुर्बल एवं रुग्ण हो जाते हैं। जिसका परिणाम अल्पायु में जीवन की परिसमाप्ति हो जाती है । स्वस्थ, श्रेष्ठ और शान्त जीवन के लिए शाकाहार अनिवार्य है । उसके साथ मानसिक शान्ति, आध्यात्मिक विकास के लिए अणुव्रत का संकल्प और प्रेक्षा का अभ्यास शुभ शक्तियों को जागृत करता हुआ परम अस्तित्व की यात्रा प्रारम्भ करवाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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