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________________ अनुत्तरित प्रश्न ४६ करता है। परिग्रह का संग्रह, सुरक्षा, व्यवस्था से व्यक्ति इस प्रकार अपने जीवन को जोड़ लेता है। उससे मुक्त होना समस्या बन जाती है। परिग्रह आन्तरिक स्थिति है। जब तक प्राणी इस आन्तरिक स्थिति को स्पष्ट रूप से अनुभव नहीं कर लेता तो उससे मुक्त होने के लिए कैसे पुरुषार्थ कर सकता है ? प्रेक्षा के प्रकाश से संज्ञा विलय आहार, भय, मैथुन और परिग्रह के इस ब्यूहचक्र से प्राणी का निकलना कितना कठिन है ? प्राणी की स्वार्थ चेतना ज्यों-ज्यों विकसित होती है पदार्थ चेतना बढ़ जाती है। संज्ञाएं प्राणी को इस प्रकार घेरे रखती हैं। उससे मुक्त होने की कल्पना करना ही महाभारत है। ___ संज्ञाओं से उद्भूत समस्याओं के समाधान के लिए सबसे प्रथम प्रयास दृष्टिकोण के परिवर्तन का है। दृष्टिकोण के परिवर्तन का तात्पर्य है यथार्थ दृष्टि । जो पदार्थ अथवा भाव जिस रूप में है उसे उस रूप में समझें और जानें। समझना और जानना प्रेक्षा है। प्रेक्षा के पश्चात् अनुप्रेक्षा के प्रयोग से छाए हुए सघन संस्कारों को विच्छिन्न किया जा सकता है। मूलवृत्ति के परिवर्तन के लिए प्रेक्षा और अनुप्रेक्षा अनिवार्य है। प्रेक्षा से सत्य का साक्षात्कार होता है वहां अनुप्रेक्षा जाने हुए सत्य को पुष्ट बनाती है। प्रेक्षा, अनुप्रेक्षा से पूर्व संस्कार धुलकर स्वच्छ और निर्मल बन जाते हैं। प्राणी अपने स्वरूप की ओर लौटने लगता है। उस पर संज्ञाओं का प्रभाव नहीं के बराबर रह जाता है। व्यक्ति परम यात्रा की ओर गतिशील बनने लगता है। ०००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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