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________________ अनुत्तरित प्रश्न ४७ प्रेक्षा और अनुप्रेक्षा से अभय की यात्रा प्रारंभ कर संतुलित जीवन जीया जा सकता है। संतुलन से वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक आदि विभिन्न क्षेत्रों में नवशक्ति का संचार होता है। मैथुन संज्ञा-निजत्व की सुरक्षा प्राणी की तीसरी इच्छा ; मौलिक मनोवृत्ति मैथुन संज्ञा है। मैथुन की संज्ञा इतनी गहनतम है कि सामान्य प्राणी का उससे मुक्त होना सहज नहीं है। मैथुन का तात्पर्य-मिलना। स्त्री और पुरुष में एक-दूसरे के प्रति जो आकर्षण है वह स्त्री अथवा पुरुष का नहीं है, उसमें रहने वाली काम-ऊर्जा का है। ऊर्जा में आकर्षण होता है। वह परस्पर एक-दूसरे को आकर्षित करती मनोविज्ञान के प्रवर्तक डा० फ्रायड का मानना है कि, काम हमारी मूलभूत मांग है। कामना के धागों से बुनकर ही जीवन की सप्तरंगी चादर बनती है। उन्होंने काम के विभिन्न पहलुओं को चर्चित किया है। मैथुन को संभोग के कोण से ही क्यों देखा जाये ? उसके और अनेक पहलू हैं। शरीरगत किया गया मैथुन स्थूल है, जो केवल प्राणी की संतति को उत्पन्न कर अपनी जाति की सुरक्षा करता है। जाति-परम्परा को निरन्तर बनाए रखने के लिए मैथुन की अपेक्षा रहती है। जाति को जीवन्त बनाए रखना उसकी अपनी अन्तरंग संज्ञा है। मैथुन में मानसिक रसात्मकता भी एक कारण है। रति में आकर्षित मन पुनःपुनः उस ओर प्रवृत्त होता है। यह केवल शरीरगत ही क्रिया नहीं है। मानसिक स्तर पर भी होता है, जिसमें समान विचार-चिन्तन वाले परस्पर एक-दूसरे के प्रति समर्पित होते हैं। मानसिक बल पर एकात्मकता का अनुभव कर उसमें ही रहना मानसिक मिलन है। इसमें स्थूल शारीरिक सक्रियता विराम पा लेती है। मानसिक बल पर एक-दूसरे के प्रति समर्पण जीवन्त हो जाता है। मन के बल पर जो अर्पण होता है उससे सृष्टि विकसित नहीं होती। मन के बल पर अतीत और भविष्य को अंकित किए बिना केवल वर्तमान में मन को सजग बनाए रखना होता है। मन स्वयं के चिन्तन-मनन में लीन रहे। उसकी मानस ऊर्जा स्वयं में विलीन होकर अस्तित्व की ओर गतिमान बनें। अस्तित्व की उत्सुकता ज्यों-ज्यों बढ़ती है। मैथुन की भावना रूपान्तरित हो जाती है। मानस की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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