________________
४२
प्रज्ञा की परिक्रमा भय से मुक्ति के उपायों पर जब चर्चा करते हैं, तो सबसे पहले कायोत्सर्ग ही आवश्यक है। कायोत्सर्ग शरीर और मन दोनों के बीच एक सामंजस्य स्थापित करता है। सामंजस्य ही समाधि की ओर चैतन्य को ले जाता है। कायोत्सर्ग से भेद-विज्ञान की स्पष्टता होती है, जिससे व्यक्ति को यह अनुभव होता है कि मैं शरीर नहीं हूं। शरीर में बहने वाली चैतन्य की धारा इस शरीर से भिन्न हैं, जिससे शरीर एवं पदार्थ के प्रति आसक्ति का भाव टूटने लगता है। जागृत चैतन्य से कोई सत्य अज्ञात नहीं रहता, सत्य ज्ञान होने से भय की निवृत्ति सदा-सदा के लिए हो जाती है। भय-मुक्ति और सुझाव
भय के कारणों की चर्चा में धारणाओं (भावनाओं) का उल्लेख किया गया। धारणा पहले स्थूल जगत् पर अवतरित होती है। स्थूल मन से सूक्ष्म मन पर और फिर सूक्ष्मतम मन में प्रविष्ट हो जाती है, जिसे मनोविज्ञान ‘कॉन्सस्' (conscious) कहता है। ‘सबकॉन्सस्' (sub conscious) में गई हुई वृत्ति को निर्मल बनाने के लिए सुझाव (suggestion) आवश्यक है। कायोत्सर्ग द्वारा शरीर को योग-निद्रा में ले जाकर भय के संस्कारों को निरसन करने के लिए विधायक सुझावों को अन्तर्मन को दिया जाएं, तो उससे भय के संस्कार निरस्त हो जाते हैं।
सुझाव का मार्ग स्वयं अथवा किसी योग्य निर्देशक के माध्यम से किया जाएं, तो सरलता से भय के अनेक संस्कारों से मुक्त हो सकते हैं । सन् १६७४ हिसार साधना-शिविर में बीकानेर का एक हरिजन भाई आया। उसने किसी से सुना कि साधना-शिविर में भय के संस्कारों को दूर करने के प्रयोग होते हैं। वह शिविर में प्रविष्ट हो गया। आसन, प्राणयाम, कायोत्सर्ग एवं ध्यान के प्रयोग चल रहे थे। वह तीसरे दिन मेरे पास आया और कठिनाई को प्रस्तुत करते हुए बोला कि मैं तो अपनी समस्या के समाधान के लिए यहां आया हूं। उसे त्राटक के माध्यम से कायोत्सर्ग में ले जाया गया। कायोत्सर्ग में प्रवेश के साथ ही बुरी तरह छटपटाने लगा, शरीर में ऐंठन-सी होने लगी। अत्यन्त भयभीत हो चिल्लाने लगा। सुझावों के माध्यम से उसके चित्त और शरीर को पूर्ण शैथिल्य एवं विश्राम की सूचना दी गई। अब वह धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आने लगा। उस अवस्था में उसे स्पष्टता से उस दृश्य को दिखाते हुए अभय के सुझाव दिए गए। तीन दिन के प्रयोग से वह उस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org