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भय मुक्त कैसे हों को बचाना हो तो भागो, आकाश गिर गया है। अन्त में शेर के सम्मुख खरगोश आया और बोला, "मैंने देखा है और सुना है आकाश को गिरते हुए। यह मेरी खुश किस्मत थी कि मै बच गया, नहीं तो मेरा निश्चित विनाश था।'
'कहां गिरा है तुम्हारा आकाश बता मुझे......।' 'मैं नहीं जा सकता वहां....।' 'वहां; कहां, मैं चलता हूं तुम्हारे साथ। खरगोश कांपता हुआ बोला, मैं दूर से उस स्थान को दिखा सकता हूं
लेकिन....
शेर के साथ खरगोश गया। उसने दूर से उस स्थान की ओर संकेत किया। शेर ने उस स्थान को देखा तो अखरोट का फल पड़ा मिला। उस फल को सबके सामने रखा, तो सब खिलखिलाकर हंसते-हंसते लोटपोट हो गए।
खरगोश की तरह ही आज इन्सान भय से भयभीत है। वह स्वयं भय की कल्पना करता है और स्वयं भय से भयभीत बनता है, लेकिन भय क्या
उसका साक्षात् उसने कभी किया नहीं और न वह जान पा रहा है कि भय आखिर है क्या ? शेर के शावक को उसकी मां सिखाती है कि तुझे
और किसी का भय नहीं, किन्तु एक काले माथे वाले का ध्यान रखना। वह बड़ा ही विचित्र प्राणी है। उससे ही तुझे डर है, भय है, इधर मनुष्य शेर से डरता है। उसका कारण शेर की क्रूरता है, किन्तु वह मनुष्य से डरता है वह मात्र अपनी मां के प्रशिक्षण का परिणाम है। ___भय, चित्त की वह अवस्था है, जिसमें व्यक्ति का शरीर वाक् एवं मानस आन्दोलित हो जाता है। उसका संस्कार सूक्ष्म शरीर से चेतना तक जाता है। चैतन्य का प्रकम्पन संस्कारों को प्रभावित करता है। संस्कारों से मन, वाक और शरीर चंचल बनते हैं। इस चंचलता के भय का निर्माण होता है। भय केवल अन्तरंग घटना ही नहीं है, वह बाहर के वातावरण से भी प्रभावित होता है। भय के निर्माण में बाहर का वातावरण कार्य करता है, वहां अन्तरंग कारण भी है। प्रत्येक प्राणी में आहार-संज्ञा की तरह भय-संज्ञा है। भय मौलिक वृत्ति है। वह प्राणी में है। भय क्यों होता है ? मनोवैज्ञानिक ने इसे
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