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१० भय-मुक्त कैसे हों ?
एक था खरगोश | वह अखरोट के पेड़ के नीचे ऊंघ रहा था। एक अखरोट हवा के झोंके के साथ खरगोश के कान के पास गिरा। खरगोश नींद में तो था ही, खड़खड़ाहट की आवाज से वह चौंका। भय से आक्रांत तेजी से गहरे जंगल की ओर दौड़ा। उसकी तेज गति को देख, दूसरे खरगोशों ने प्रश्न किया, 'दादा ! इतनी तेज गति से क्यों दौड़ रहे हो? क्या प्रलय हो रहा है ?' प्रलय क्या ? महाप्रलय होने वाला है। ‘पागलों ! तुम्हें पता नहीं आकाश गिर गया' ! 'आकाश ? हां आकाश.....।' खरगोश बेहताशा दौड़ा जा रहा था। दूसरे खरगोश भी मन ही मन भयभीत बन उसके पीछे दौड़ने लगे। खरगोशों की टोली जंगल में तेजी से दौड़े जा रही थी। पथ में सियाल मिले। वे गमगीन थे कि खरगोश क्यों दौड़े जा रहे हैं ? वे भी उनके साथ दौड़ने लगे। सियालों को देखकर हिरण भी उनके साथ हो गये। हिरणों के साथ-साथ जंगल के जानवर दौड़ने लगें। सारा जंगल ही मानो दौड़ने लगा। शेर ने जब जंगल के अन्य जानवरों को इस तरह देखा, तो आश्चर्याभिभूत हो गया ? क्या मेरे से भी बढ़कर कोई समर्थ पैदा हो गया ? वह तेज ध्वनि के साथ दहाड़ा। उसकी इस गर्जना से सारा जंगल सिहर उठा सारे जानवर जहां के तहां रुक गयें। __ "कौन है वह जो मेरे रहते जंगल में इस तरह की गुस्ताखी करें ?' सब मूक थे। बोलते क्यों नहीं ? क्या हुआ तुम सबको, जो पागलों की तरह दौड़े जा रहे थे ?'
हाथी ने कहा, "मुझे पता नहीं घोड़े दौड़े जा रहे थे। उन्हें देखकर हम भी दौड़ने लगे' घोडों से जब पूछा तो उनका भी ऐसा ही उत्तर था, 'हमें पता नहीं, हिरण दौड़े जा रहे थे। इसलिए हम भी दौड़ने लगें ।' हिरणों ने सियालों का, सियालों ने खरगोशों का नाम लिया। खरगोशों ने कहा, हमें तो कुछ पता नहीं, हम सब तो शान्त छुप-छुपे खाना खा रहे थे। इतने में बूढ़ा दादा बड़ी तेजी से दौड़ता हुआ कह रहा था, जंगल के 'जानवरों ! जीवन
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