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प्रज्ञा की परिक्रमा रूपान्तरण हुआ। उसके चित्त पर जमे संस्करणों का विलय हुआ। वह उस वेदना से मुक्त हो स्वस्थ बन गया।
अरुणा की मम्मी मेरे पास पहुंची और अपनी पुत्री की दुःख भरी कहानी सुनाने लगी। मैंने कहा-बहिन ! हम लोग कोई चिकित्सक नहीं हैं। किसी मनोचिकित्सक को दिखाया नहीं ? वह और कुछ सुनना ही नहीं चाहती; आप मनोचिकित्सक नहीं तो आत्म-चिकित्सक तो हैं। किसी प्रकार आर्त्त-ध्यान से मुक्त बनें, आप मार्ग दर्शन करें। आप इन्कार भले ही करें, मैंने अभी-अभी हिसार शिविर में उपस्थित उस युवक की घटना सुनी है। जब वह ध्यान से ठीक हो सकता है तो मेरी लड़की ठीक क्यों नहीं हो सकती?
उसके तर्क में बल था, भावना में अगाघ श्रद्धा थी। मेरे लिए इन्कार करना कठिन था, फिर भी मैं जानता था, यह मानसिक उद्वेग है उसकी भय-ग्रन्थियों का परिणाम है। उसके अन्तर चित्त पर किसी अज्ञात घटना ने विस्फोट किया है, जिससे यह अवस्था बनी है। संकल्प योग से उसके चित्त को निर्मल बनाकर संस्कारों की ग्रन्थियों का उच्छेद किया जा सकता है। साथ ही यह भी जानता था, ध्यान व्यक्ति के अन्तःकरण से प्रगट होता है, उसमें बाहर का निमित्त केवल दिशा-निर्देशन कर सकता है। अन्तर ग्रन्थियों के उच्छेद के लिए उसे स्वयं यात्रा करनी होती है। __ पास बैठी अरुणा मौन सब कुछ सुन रही थी। उसके मुख से सहसा स्वर फूटे मैं ध्यान के लिए तैयार हूं। आप जैसा निर्देश करेंगे, ईमानदारी से उसका पालन करूंगी। ___ उसकी सहज स्वीकृति पा मैंने ध्यान की प्रारम्भिक स्थितियों को समझाया और प्रयोग की भूमिका बतलाई । अर्हम के दीर्घनाद से ध्यानस्थल का वातावरण गंजित हो उठा। अरुणा की भृकुटि पर टिकी एकटक आंखें कब ध्यान में डूब गई, उसकी मम्मी देखते ही रह गई। ___शब्द-ध्वनि उसके अन्तर्-चित्त पर एक ऐसी चोट कर रही थी कि वह मानो किसी सागर पर आये बर्फ की परत को चीर गहराई में ले जा रही हो। उसके मुख पर तैर रही विभिन्न भावनाओं को स्पष्ट पढ़ा जा सकता था। स्थूल शरीर प्रतिमा की तरह स्थिर हो गया। किन्तु उसकी आंखों की पुतलियां भयभीत चित्त को स्पष्ट अभिव्यक्त कर रही थी। अन्तर्-चित्त में
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