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मन के सांप जो ध्यान से भागे
सन्देह वैसा का वैसा बना रहा। डैडी और मम्मी ने सोचा कि मौसी के जाने से यह बला टल जायेगी, लेकिन हुआ उल्टा । सब जगह सांप ही सांप देखने लग गई। कभी वह ड्राइवर को टोकती, देख नहीं रहे हो सामने सांप दौड़ा रहे हैं ? तुम मोटर को सरपट दौडा रहे हो। पास से कोई स्कूटर या टैक्सी गुजरती, उसमें बैठे हुए व्यक्ति के आस-पास में फुंफकारते हुए सांपों को देखती ।
उसकी इस समस्या के समाधान के लिए जो-जो प्रयत्न करना चाहिए था, वह किया, लेकिन उसके हाथ निराशा के अतिरिक्त कुछ नहीं आया । वह मजारों पर भी गई, मन्दिरों पर भी गई। झाड़ा फूंकने वाले ओझाओं के पास भी गई। जो-जो उसे करना था किया। जब व्यक्ति किसी वेदना से पीड़ित होता है तो वह न मालूम कहां-कहां और किस-किस के द्वार खटखटाता है। आस-पास रहने वाले प्रियजनों के मन में एक भाव रहता है, किसी तरह इस कष्ट से छुटकारा मिले । अरुणा की मम्मी जैन परंपरा
पली थी, वह जैन मुनियों के प्रति श्रद्धा व आदर का भाव भी रखती थी । मुनि-दर्शन के लिए जब वह गई, अरुणा भी उसके साथ थी। वहां भी वह फिर बड़बड़ाने लगी । सत्संग में बैठी सन्तोष ने उनकी मम्मी से पूछ ही लिया - अरुणा को यह सब कब से हो गया ? उसने संक्षेप में ज्वर के पश्चात् होने वाली घटनाओं का जिक्र कर औषधि, मंत्र-तंत्र आदि उपचार का विवरण भी बता दिया ।
सन्तोष सारे घटनाचक्र को सुन उसके मानसिक द्वन्द्व से अपरिचित नहीं रह सकी । सहसा उसकी स्मृति में तुलसी अध्यात्म नीडम् के हिसार शिविर में घटित घटना का स्मरण हो आया यह शिविर वि० सं० २०३० में आचार्यश्री तुलसी के चार्तुमास में आयोजित हुआ था । इसी प्रकार बीकानेर का एक युवा मानसिक पीड़ा से संत्रस्त था । उसे एक विचित्र दृश्य दिखाई देता, उसे देखकर उसका रक्त क्षीण हो जाता और वह अपने आप में दुर्बलता महसूस करता। शरीर में ज्यों ही कुछ रक्त संचार एवं शक्ति अनुभव करता, उसी रात्रि में उसे यह विचित्र दृश्य दिखाई दिया कि कोई हिंस्र पशु उसके शरीर को नोंच रहा है और रक्त पी रहा है। इस पीड़ा में वह काफी समय पीड़ित रहा । उसके किसी साथी ने ध्यान शिविर में जाने की प्रेरणा दी । वह हिंसार शिविर में आया । ध्यान के विभिन्न प्रयोगों से उसकी मानसिक स्थिति में
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