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समस्या का मूल : समाधान का फूल
"क्रोध क्यों करते हो ? माया के चक्कर में कैसे आ गए ? तुझे शर्म नहीं आई ? तू स्वाद लोलुप कैसे हो गया ? तू घमण्डी कैसे हो गया ? तुझे ज्ञान इसीलिए सिखाया था ? शिष्य को गुरु बड़ी बेखूबी से डांट रहे थे। बेचारा शिष्य बिना कुछ बोले चुपचाप सुन रहा था। मेरा अन्तर चित्त आन्दोलित होने लगा। प्रश्नों की लम्बी श्रृंखला उभर आई। क्या वह क्रोध करता है ? माया के चक्कर में वह आ रहा है ? क्या स्वाद लोलुप बन रहा है ? क्या धमंड वह करता है ? मेरा चिन्तन इन सभी प्रश्नों में उलझ रहा था कि पड़ोस के घर से ऊंची आवाज गूंज उठी। बेवकूफ कहीं का तूने मेरे व्यापार को ही चौपट कर दिया। मेरे कुल को कलंकित कर दिया। पिता के सन्मुख बेटा क्या बोलता? ___मैं हैरान था, बेचारे ने ऐसा कौन सा अपराध कर दिया, जिसके लिए उसे इतनी लताड़ मिल रही है। पास खड़ी सास अपनी बहू को कोस रही थी-दुष्टा ! तूने हमारे वंश का ही नाम मिटा दिया। मेरे बेटे के पश्चात् इस घर का आधार कौन होगा ? तू निपूति ही रही। बहू मौन, सब कुछ सहे जा रही थी, बोले भी तो क्या बोले। ____ कारखाने में मजदूर को मालिक आंख दिखा रहा है। उत्पादन गिर रहा है। ग्राहकों की आवश्यकता पूरी नहीं हो पा रही है। कल तक १३ ग्रूस सामान नहीं बना तो फैक्ट्री से बरखास्त । मजदूर मिमियाते स्वर में हां, बाबूजी, बिना आंख उठाये अपने काम में जुट गये हैं। __ मैं मन ही मन चिन्तन कर रहा था कि मजदूर काम पूरा करे भी तो कैसे करें ? विद्युत उसे पूरा मिलता ही नहीं। ___ आज शिष्य के सन्मुख समस्या है कि वह गुरुजी की बात कैसे पूरी करें? बेटा सोचता है कि पिता की आज्ञा का कैसे अनुपालन करें ? बहू सास की भावना कैसे पूरा करें ? मजदूर मालिक के आदेश की पूर्ति कैसे करें ?
समस्या सभी के सन्मुख है। उसके समाधान के सूत्रों का अन्वेषण अनिवार्य है। शिष्य क्रोध का उपशम कैसे करें ? आखिर यह कब तक ऐसे
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