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चैतन्य का स्फुरण एवं भौतिक विस्फोट देखकर अयोध्या से प्रवर्जित सुनक्षत्र नाम का अणागार उठा, उसको भी गोशालक ने भस्म कर दिया। भगवान् महावीर ने गोशालक के इस कृत्य को देखकर कहा-गोशालक! तेरे लिए इस प्रकार का व्यवहार उचित नहीं। मैंने तुझे शिक्षित किया, दीक्षित किया, फिर भी तू ऐसा व्यवहार कर रहा है। गोशालक उत्तेजित होकर पांच-छह कदम पीछे हटा और भगवान् पर तैजस्लब्धि का प्रयोग कर दिया। तेजस्लब्धि भंयकर आग की लपटें छोड़ती हुई भगवान् के शरीर के चारों ओर घूमने लगी। सारी सभा भयभीत और संत्रस्त हो उठी। महावीर अविचल अपने स्थान पर ठहरे हुए थे, तेजोलब्धि ने आकाश मार्ग से लौटकर गोशालक के शरीर में प्रविष्टि कर गई । गोशालक ने कहा-महावीर ! तुम मेरे तपःतेज से दग्ध हो चुके हो, छ: महीने में पित्तज्वर से आक्रान्त हो मृत्यु को वरोगे । भगवान् बोले-मैं छ: मास के भीतर नहीं मरूंगा, अभी सोलह वर्ष जीवित रहूंगा। लेकिन तुम सात दिनों के भीतर मृत्यु का वरण करोगे। महावीर की यह घोषणा सत्य सिद्ध हुईं। गोशालक की मृत्यु महावीर के कथनानुसार हुई। तेजस्लब्धि की क्षमता
तेजस् लब्धि (कुंडलिनी शक्ति) एक विशेष प्रकार की प्राणशक्ति है। जो रुक्ष भोजन, तपस्या और सूर्य की आतप शक्ति के साथ ध्यान के प्रयोगों से उपलब्ध होती है। ठाणं, भगवती एवं आचारांग में इस संबंध में विस्तृत चर्चा है। तैजस्लब्धि से सम्पन्न व्यक्ति अपने स्थान पर खड़ा-खड़ा अंगअंग जैसे विशाल प्रान्तों को कुछ क्षणों में भस्म कर सकता है। आज के आयुद्धों से भी यह भयानक शक्ति है। यह शक्ति नष्ट करने की ही नहीं, अपितु सुरक्षा के उपयोग की भी है। जिसे शीतल तैजोलब्धि कहा जाता है, जो भयानक आग को शान्त कर सकती है। जिस व्यक्ति के पास तैजोलब्धि उपलब्ध है, उस व्यक्ति का भी इस लब्धि से कोई अहित नहीं किया जा सकता। ठाणं सूत्र में दसवें स्थान के एक सौ उनसठवें पद में तैजोलब्धि सम्पन्न साधक के बारे में चर्चा करते हुए लिखा है-कोई व्यक्ति तैजोलब्धि सम्पन्न श्रमण महान् की आशातना करता हुआ, उस पर कोई लब्धि का प्रयोग करता है तो वह लब्धि उस मुनि के शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती। मार नहीं सकती। उसके शरीर के ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं प्रदक्षिणा देती हुई आकाश मार्ग से वापिस लौटकर जिसने लब्धि का प्रयोग किया, उसी के शरीर में प्रविष्ट हो
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