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चैतन्य का स्फुरण एवं भौतिक विस्फोट तक उसका उपयोग नहीं हो सका। परमाणु की शक्ति से जब परिचय हुआ उसका सामाजिक, राष्ट्रीय एवं दैनंदिन जीवन में उपयोग बढ़ता जा रहा है। वैज्ञानिकों ने उस शक्ति के दोहन के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। शरीर में स्थित चैतन्य ऊर्जा का अनुभव ज्यों-ज्यों समाज को होगा, एक आध्यात्मिक क्रान्ति घटित होगी। प्राण और चैतन्य की ऊर्जा इतनी प्रचण्ड और विश्व कल्याणकारी है, जिसकी कल्पना सामान्य मानव नहीं कर सकता। परमाणु बमों की भयानकता से तो सभी परिचित हैं, उसके विस्फोट से किस प्रकार जन-जीवन तहस-नहस किया जा सकता है। लेकिन उससे विद्युत उत्पन्न कर निर्माण का विराट कार्य भी पूर्ण किया जा सकता
है।
तेजस के विस्फोट का परिणाम
प्राण और तैजस की शक्ति के विस्फोट का परिणाम नाकासाकी हीरोशिमा की तरह प्रत्यक्ष नहीं है। इसका तात्पर्य यह नहीं कि उसमें शक्ति और सामर्थ्य नहीं। नाकासाकी पर विस्फोट से पूर्व क्या परमाणु शक्ति नहीं थी ? आज भी प्राण और तैजस शक्ति के विस्फोट की यदा-कदा संक्षिप्त सूचनाएं मिलती हैं, जो इस विराट सत्य को उद्बोधित करती है। जिसको ऋषियों ने साक्षात् किया। भगवान महावीर के जीवन की घटना है-उन्होंने मंखलीपुत्र गोशालक को साधनाकाल में शिष्य बनाया, उसे शिक्षा दी। महावीर अपनी साधना में लीन थे, गोशालक के पास एक ऋषि खड़े थे जो शरीर से कुरूप, गन्दे और जीर्ण-शीर्ण वस्त्र पहने अपनी साधना में लगे हुए थे। गोशालक ने उसको तंग करना शुरु कर किया। वे कुपित हो उठे। उनके शरीर से भयंकर ज्वाला फूटी और गोशालक को जलाने के लिए उस पर छाने लगी। गोशालक चिल्लाता हुआ महावीर की शरण में दौड़ा-महावीर ! मुझे बचाओ, बचाओ, यह ऋषि मुझे जला रहा है। महावीर ने उस पर ध्यान दिया और उनके शरीर से शीतल तेजोलब्धि फूटी और भयंकर उठ रही ज्वाला शांत होकर लौट गई। गोशालक इस दुर्घटना से बाल-बाल बच गया। तेजस् लब्धि का प्रशिक्षण
गोशालक ने महावीर के सामर्थ्य को देखा। भाव विभोर हो गया। उनके निकट आग्रह पूर्वक अनुयय-विनय करने लगा। मुझे तैजस् लब्धि के प्रयोग
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