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________________ चैतन्य का स्फुरण एवं भौतिक विस्फोट ध्यान आज राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर चर्चनीय विषय है। विज्ञान ने अपने प्रयोग पदार्थ पर बहुत किए। उसके परिणाम भी सबके समक्ष हैं। विज्ञान के विकास से जहां मानव जाति बाहर से एक दूसरे के समीप आई है, वहां उसके अन्तःकरण एक दूसरे से दूर हो गए हैं। विज्ञान पदार्थ की खोज करते-करते अध्यात्म के उन तथ्यों की ओर अग्रसर हो गया है। उसे विवश होकर पदार्थ के पार तथ्यों पर खोज करना प्रारम्भ कर दिया है। जड़ पदार्थ ही सब कुछ नहीं है। चैतन्य सत्ता के सामर्थ्य को जानना आवश्यक है। उसके बिना जड़ का महत्त्व ही क्या है ? उसका उपयोग किसके लिए है ? जड़ और चेतन दोनों ही महत्वपूर्ण इकाई हैं, दोनों परस्पर सापेक्ष हैं। वर्तमान क्षण का अनुसंधान प्रेक्षा जगत् में जो उपलब्ध है, वह शुद्ध चैतन्य नहीं है, जड़ से संयुक्त है। जड़ से संयुक्त चेतना ही संसारी आत्मा है। उसमें ही क्रोध, मान, माया, लोभ उपलब्ध होते हैं। यह कषाय चतुष्क ही सारी प्रवृत्तियों का मूल है। कषाय के उपशम करने की साधना के लिए प्रवृत्त व्यक्ति महात्मा कहलाता है । कषाय (राग-द्वेष) के संपूर्ण विलय की स्थिति ही परमात्मा परम अस्तित्व है। प्रेक्षाध्यान की प्रक्रिया में रागद्वेष रहित वर्तमान क्षण का अनुसंधान है। केवल . ज्ञानोपयोग ही प्रेक्षा है। प्रेक्षा की स्थिरता के लिए अनुप्रेक्षा का अभ्यास आवश्यक है। अनुप्रेक्षा से भावित चित्त में प्रेक्षा और अधिक स्पष्ट होती है। प्रेक्षा और अनुप्रेक्षा की पुष्टि के लिए उपसम्पदा (ध्यान-दीक्षा) स्वीकार की जाती है। उपसम्पदा के मुख्य पांच तत्त्व हैं-भावक्रिया, प्रतिक्रिया विरति, मैत्री, मिताहार, मौन। भावक्रिया का तात्पर्य है-सतत जागरुक रहना। कोई भी कार्य जानते हुए करना होश पूर्वक करना। भावक्रिया से वर्तमान में आ जाते हैं, वर्तमान में राग-द्वेष रहित निरन्तर रहना ही भावक्रिया है। सामान्यतः साधक अक्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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