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________________ प्रज्ञा की परिक्रमा बचाओ। तुम्हारी शरण में आ गया हूं। अब तुम ही मेरे लिए... शरणागति । " सुन सामना नहीं कर सकता, दरवाजा भी बन्द नहीं होता, उठ, मेरी प्रतिमा के पीछे छुप जा किसी को कुछ पता नहीं चलेगा ।" १० जगदम्बे ! मेरी धड़कन तेज हो गयी है । चक्कर आने लगे हैं, मेरे से कुछ नहीं हो सकता, तारो अथवा मारो, अब तुम ही कल्याणी हो । देवी रोष से भरी हुयी बोली - "पुरुषत्वहीन, अकर्मण्य, दुष्ट इतना भी नहीं कर सकते, तो तेरी रक्षा कौन करेगा ? अणु को महान् बनाया जा सकता है, लेकिन जो व्यक्ति कुछ भी पुरुषार्थ नहीं करना चाहता, उसका सहयोग • कौन कर सकता है ? स्वयं पुरुषार्थ करें तो साथ में दूसरों की शक्ति सहयोगी बन सकती है । पागल, हट, मेरे मन्दिर से, मैं ऐसे अकर्मण्य का सहयोग कभी नहीं कर सकती ।" चोर ने देवी से प्रार्थना की अथवा नहीं की, किन्तु धर्म की दयनीय स्थिति देखकर लगता है वह दूसरों के सहारे जीना चाहते हैं। सहारे के बिना मानों वह खड़ा भी नहीं रह सकता । जो दूसरों के सहारे अथवा कृपा पर खड़ा रहता है। वह कब कितने समय तक खड़ा रहेगा ? यह विचारणीय प्रश्न है। धर्म की आज राष्ट्र, समाज और परिवार में अवहेलना हो रही है। वह उसकी अपनी अक्षमता है, असामर्थ्य है, अपौरुष है । धर्म की तेजस्विता और शक्ति ने ही उसे सर्वप्रथम समाज में प्रतिष्ठित किया । भगवान् ऋषभ ने स्वच्छन्द आदिवासी संस्कृति को परिवार, समाज व राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठा दी । व्यक्ति समृद्ध और शान्ति सम्पन्न बना । भगवान् ऋषभ का साम्राज्य दूर-दूर तक फैल गया । ऋषभ को सब कुछ उपलब्ध था। उसके बाद भी एक सत्य उनके सम्मुख था । वस्तु एवं जीवन की नश्वरता स्पष्ट थी । वस्तुएं प्रतिक्षण परिवर्तित होती जा रही हैं, मनुष्य जीवन भी इसी तरह नश्वर है। युवा शरीर जीर्णता में बदलता जा रहा है। जीवन मृत्यु में विलीन हो रहा है, ऋषभ प्रतिक्षण विनश्वर जगत में एक अविनश्वर सत्य का अनुभव निरन्तर कर रहे थे, जो सुख-दुख, लाभ-अलाभ, प्रिय-अप्रिय से मुक्त प्रतिक्षण आनन्द स्वरूप में आन्दोलित हो रहा था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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