________________
क्या पंगु है धर्म ?
धर्म को सहारा चाहिए। धर्म को चलाने वाला चाहिए। धर्म के प्रति श्रद्धा रखो। धर्म को चलाने वालों के मुख से जब यह सुनता हूं तब बड़ा अजीब लगता है। मन नाना प्रकार के प्रश्नों से भर जाता है। धर्म का अनुपालन कर, क्या धर्म पर अहसान किया जा रहा है ? धर्म के लिए सहारे की मांग से उसकी महत्ता प्रदर्शित हो रही है ? या धर्म को सहारा देने वाले व्यक्ति से कृपा की याचना की जा रही है ? धर्म को चलाने वाला चाहिए। क्या धर्म में स्वयं चलने का सामर्थ्य नहीं ? क्या धर्म में स्वयं खड़े रहने की क्षमता नहीं ? क्या धर्म का अपना व्यक्तिव नहीं ? उसे क्या श्रद्धा से ही मानना होता है ? धर्म की इस दयनीय स्थिति से चित्त चिन्तन में डूब गया।
एक चोर था। चौर्य कर्म में अत्यन्त कुशल, किन्तु चोरी करते हुए एक चौकीदार के ध्यान में आ गया। अपने आपको बचाने के लिए अब भागने के सिवाय कोई चारा नहीं था। वह दौड़ा जा रहा था, पथ में देवी का विशाल मन्दिर आया। उसके चरण रुके। वह मां के चरणों में गिर गया गिड़गिड़ा कर प्रार्थना करने लगा। ___ "मां ! मुझे बचाओ। तुम ही मेरी रक्षिका हो। चौकीदार पीछे आ रहा है।" उसकी दयनीय स्थिति से देवी करुणा से भर गयी और प्रकट हो कर बोली-“भद्र उसका मुकाबला करो, तुम विजयी बन जाओगे।"
मां ! विजयी तो बन जाऊंगा लेकिन सामना करने की क्षमता मेरे में नहीं है। पांव लड़खड़ा रहे हैं, शरीर सत्वहीन हो गया है। तुम ही कृपा करो। इस संकट से उबारो। तुम ही त्रायी और रक्षिका हो। __ "अच्छा कोई बात नहीं। तुम मुकाबला नहीं कर सकते हो, तो चलो मन्दिर के दरवाजे बन्द कर चुपचाप बैठ जाओ।" ___ "मां तुमने बड़ा सुन्दर उपाय सुझाया, परन्तु दरवाजे को बन्द करने का सामर्थ्य नहीं है। सारा शरीर निःसत्व हो गया, तुम ही दया करो संकट से
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org