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प्रज्ञा की परिक्रमा संपृक्त होता है, तब उसमें पूर्वकषाय के कारण प्रिय-अप्रिय भाव उत्पन्न होते हैं। प्रिय-अप्रिय भाव का ही परिणाम है कि चेतना राग-द्वेष में परिणित हो जाती है। राग-द्वेष का यह परिणमन ही कषाय को प्रगाढ़ बनाता है। कषाय की प्रगाढ़ता ही आश्रव को प्रेरित करती है। आश्रव ही कर्मों को आकृष्ट करता है। कर्म ही पुनः-पुनः जन्म और मृत्यु का कारण है। कर्म ही दुःख का मूल है। कर्म के उन्मूलन की प्रक्रिया का नाम साधना है। मूलतः जो साधना चित्त को निर्मल बनाती हो, कषाय को उपशान्त बनाती हो, वही वस्तुतः साधना
प्रेक्षा-ध्यान-साधना का महत्त्व इसलिए दिन-प्रतिदिन उजागर होता जा रहा है कि उससे व्यक्ति का जीवन रूपांतरित होता है। जीवन को रूपांतरित करना सामान्य घटना नहीं है। वह व्यक्ति के विवेक से फलित होता है। विवेक ध्यान से प्रस्फुटित होता है। इसका तात्पर्य यह कभी नहीं है कि अन्य साधना मार्ग से जीवन रूपांतरित नहीं होता है। जिस साधना मार्ग से चित्त रूपांतरित होता है वही साधना उपयोगी व कल्याणकारी है। प्रेक्षा-ध्यान-साधना किसी सम्प्रदाय एवं मजहब की पद्धति नहीं है। प्रेक्षा स्वयं के साक्षात्कार की प्रक्रिया है। उसे किसी नाम से पुकारे उसका परिणाम समान आता है। समाज में भिन्न नाम से प्रचलित प्रक्रियाओं का विज्ञापन तो बहुत अधिक है, किन्तु अभीष्ट परिणाम जीवन में दिखाई नहीं देता।
व्यक्ति का रूपांतरण परिवार को प्रभावित करता है। परिवार से समाज, राष्ट्र और विश्व की स्थितियां बदलती हैं। विश्व अथवा राष्ट्र, समाज या परिवार को बदलने के लिए उसकी इकाई व्यक्ति को बदलने का पुरुषार्थ करना होता है । स्वयं के पुरुषार्थ के बिना किसी को कोई भी दुनिया की ताकत नहीं बदल सकती, चाहे वह कोई भी महापुरुष क्यों न हो ? ___ महावीर का दामाद जमाली था। महावीर के कल्याणकारी मार्ग से हटकर विषयगामी बन गया। करुणा से प्रेरित होकर भगवान् महावीर ने गोशालक को बचाया, फिर भी उसने भगवान् महावीर पर भयंकर तेजोलब्धि का प्रयोग कर भगवान् के शिष्यों को भस्म कर उन्हें पीड़ित किया।
हरिजनों के उद्धारक राष्ट्रपिता महात्मागांधी ने राष्ट्र में छुआछूत को दूर करने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके विचारों से सवर्ण व अन्य
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