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प्रज्ञा की परिक्रमा की अपनी एक व्यवस्था होती है। उसका अनुपालन करने वाला व्यक्ति समाज में सभ्य कहलाता है।
समता, प्रेम और करूणा अन्तरंग स्थिति है। समानार्थ नहीं होते हुए भी तीनों एक ही स्थिति के ही परिणाम हैं। समता के परिणाम को प्राप्त करने के लिए पहला सूत्र है-आत्म-निरीक्षण, दूसरा है आत्म-विश्लेषण तथा तीसरा सूत्र है आत्म-साक्षात्कार।
आत्म-निरीक्षण से चैतन्य में उठने वाले आवेग और उद्वेगों की स्थिति का अनुभव किया जा सकता है। आवेग और उद्वेग किस तरह उठकर चैतन्य पर आच्छादित होते हैं। जिससे व्यक्ति काम क्रोध आदि में प्रवृत्त होता है। काम-क्रोध से व्यक्ति विमूढ़ बनता है। विमूढ़ता ही समस्त दुःखों की जननी है। विमूढ़ता तोड़ने का पहला प्रकार आत्म-निरीक्षण है।
आत्म-निरीक्षण से जहां वस्तु स्थिति का अनुभव हो जाता है वहां आत्मविश्लेषण से उसका निराकरण होता है। दोष एवं कमियों को विश्लेषित करने से उनकी पकड़ छूटने लगती है। यह दोष अथवा आदत किस तरह कहां से आई जिसने मेरे जीवन को प्रभावित किया है। इस प्रकार गुण-दोष की स्पष्टता से ही व्यक्ति दोष एवं दुर्गुण से निवृत्त होता है। ___ दोष की निवृत्ति से शेष केवल अस्तित्व ही रहता है। अस्तित्व का साक्षात्कार स्वरूप का साक्षात्कार है, वह प्रेक्षा से उपलब्ध होता है। प्रेक्षा क्षणप्रतिक्षण अन्तरंग व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करती है।
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