________________
१६
स्वस्थ जीवन की पद्धति प्रेक्षा ध्यान
तनाव से मानव समाज संत्रस्त है। जीवन की सामान्य आवश्यकताओं की संपूर्ति के लिए भी उसे संघर्ष करना पड़ता है। संघर्ष से उत्पन्न आवेश से वह अनिद्रा, रक्तचाप, हृदयपीड़ा और नाना व्याधियों से ग्रसित हो जाता है । विज्ञान ने उसके समाधान के लिए औषधियों और यंत्रों का अविष्कार किया । औषधियां तात्कालिक लाभ के पश्चात् अपनी प्रतिक्रिया छोड़ जाती है जिससे व्यक्ति और अधिक पीड़ित हो जाता है। यंत्रों के विकास ने मनुष्य को सुख-सुविधाएं प्रदान की लेकिन उसने नैसर्गिक जीवन को छीन लिया । प्रयुक्त औधोगीकरण की भट्टी में वह कंकाल बन कर रह गया ।
आज व्यक्ति शरीर की दृष्टि से ही रुग्ण और दुर्बल नहीं है, मानसिक और भावात्मक दृष्टि से भी बीमार है। मनोकायिक बीमारियां प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं । चिन्ता - ग्रस्त और प्रताड़ित मानव आत्म-हत्या की ओर अग्रसर हो रहा है। विकसित और विकासशील देशों में आत्म-हत्याओं के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। मनोचिकित्सक और सरकार चिंतित है। कोई समाधान नहीं मिल रहा है। समाधान बाहर है ही नहीं तब कैसे मिलेगा ? उसे पाने के लिए अंतरंग को खोजना होगा। अंतरंग को खोजने की प्रक्रिया का नाम है 'प्रेक्षा' । प्रेक्षा से शारीरिक, मानसिक और भावात्मक आवेगों को सरलता से वश में किया जा सकता है। प्रेक्षा जीवन की नवीन दृष्टि है। प्रेक्षा चिन्तन नहीं दर्शन है - साक्षात्कार की प्रविधि है । प्रेक्षा स्वबोध है, जीवन का विज्ञान है । प्रेक्षा- ध्यान सम्यक् श्वास के अभ्यास से लेकर स्वस्थ जीवन की प्रक्रिया का प्रशिक्षण है । प्रेक्षा प्रशिक्षण के आधारभूत बिन्दु हैं- यौगिक शारीरिक क्रियाएं, योगासन, प्राणायाम, कायोत्सर्ग, प्रेक्षा-ध्यान, अनु-प्रेक्षा, सत्संग व स्वाध्याय और व्यवहार का प्रशिक्षण । यौगिक शारीरिक क्रियाएं शरीर को संतुलित बनाने की प्रविधि है जिसमें मस्तक से लेकर पैर तक १३ क्रियाएं हैं। शरीर के एक-एक जोड़ और मांसपेशियों को इससे सक्रिय किया जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org