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________________ १५० प्रज्ञा की परिक्रमा सुगन्धित अथवा नशीले पदार्थ को सेवन करने का आदेश देती है। आज भी तनाव मुक्ति के लिए विश्व में अरबों रुपयों की नशीली गोलियों का निर्माण होता है। पत्रकार की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका सरकार इस बात से चिंतित है कि युवा पीढ़ी विशेषतः कॉलेज एवं विश्व विद्यालय के छात्र एवं छात्राएं नशीली औषधियों का खुल कर प्रयोग कर रहे हैं। जिससे न केवल उनके स्वास्थ्य का अहित हो रहा है। बल्कि उससे सार्वजनिक जीवन में गड़बड़ियां प्रारम्भ हो गई हैं। नशीले पदार्थों से अपने आपको भूलने की प्रवृत्ति दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। उससे मुक्त होने के लिए कायोत्सर्ग एवं ध्यान अचूक तरीका है। उससे व्यक्ति नशीले पदार्थों से स्वत: मुक्त होने लगता है। श्वास-प्रेक्षा ही शरीर-प्रेक्षा अथवा चैतन्य केन्द्र की प्रेक्षा ये सब साधन व्यक्ति को जागरूकता का अनुभव कराते हैं। श्वास-प्रेक्षा से व्यक्ति का जहां मन केन्द्रित होता है वहां विचार शून्य-स्थिति से धूमपान आदि से मन दूर होने लगता है। सुख और दुःख की अभिव्यक्ति स्पन्दनों के माध्यम से होती है। सुखद और दुःखद अनुभूतियां स्पन्दनों का ही प्रगटीकरण है। शरीर-प्रेक्षा से इन स्पन्दनों का अनुभव एवं उसकी अनित्यता का बोध होने लगता है। जिससे व्यक्ति की मूर्छा टूटती है। मूढ़ ही सुख-दुःख में रस लेता है। चैतन्य केन्द्रों पर ध्यान से ग्रन्थियों में परिवर्तन होता है। जिससे वृत्तियां रूपान्तरित होती है। तनाव मुक्ति के लिए भारतीय ऋषियों ने अपनी साधना एवं तपस्या के द्वारा जिन प्रयोगों का उल्लेख किया है वे आज भी उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। विज्ञान की कसौटी पर चढ़कर अध्यात्म विद्या जीवन के लिए उपयोगी एवं जनमन के आकर्षण का केन्द्र बन रही है। उससे तनाव मुक्ति के साथ चैतन्य स्वरूप फलित होगा। ०००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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