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तनाव : कारण और निवारण
१४६ विधि है। अध्यात्म परम्परा ने इसके लिए कायोत्सर्ग एवं ध्यान का विधान किया है।
कायोत्सर्ग शब्द से जो अर्थ की अभिव्यक्ति होती है वह है शरीर का विसर्जन। शरीर के विर्सजन के साथ इसमें ममत्व मुक्ति का अर्थ भी जुड़ा हुआ है। ममता ही बन्धन को लाती है। बन्धन ही तनाव है। जैन परम्परा में प्रक्रिया पर विस्तार से चिन्तन किया है। बन्धन को लाने वाले मूल स्रोत राग और द्वेष है। राग-द्वेष, प्रिय-अप्रिय भाव अथवा मिथ्या-दृष्टिकोण से उत्पन्न होता है। साधना की दृष्टि से यथार्थ दृष्टि की उपलब्धि लक्ष्य को पाने का प्रथम सोपान है। जब तक दृष्टि की विशुद्धि नहीं होती है साधना का रथ आगे नहीं बढ़ता है। तनाव मुक्ति के लिए सबसे पहला उपक्रम दृष्टिकोण का परिवर्तन है। उसके लिए विवेक का जागरण आवश्यक है। जिससे व्यक्ति वस्तु अथवा घटना को यथार्थ दृष्टि से देख सके। ___तनाव मुक्ति के लिए जहां प्रकृति ने निद्रा की व्यवस्था दी है, वहां ऋषियों ने अध्यात्म विद्या का अविष्कार किया है। अध्यात्म विद्या की अनेक शाखाएं है। उनमें महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग की चर्चा की है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम से तनाव से मुक्त होने की भूमिका का निर्माण होता है। दूसरे में शरीर के स्नायु संस्थान की सुदृढ़ता से तनाव को ठहरने का अवकाश नहीं मिलता। रक्त शोधन एवं नाड़ी शद्धि से प्रत्याहार सहज होता है। प्रत्याहार से धारणा पुष्ट होती है। स्पष्ट धारणा से ध्यान की प्रगाढ़ता आती है। ध्यान की गहन स्थिति ही समाधि है। समाधि की निरन्तरता बनी रहना ही साधना का उद्देश्य है। समस्त तनाव से मुक्त हो जाते हैं। चैतन्य अपने स्वरूप में विहरण करने लगता है। तनाव मुक्ति और कायोत्सर्ग __ तनाव मुक्ति की प्राचीन प्रक्रियाओं में मुख्यतया कायोत्सर्ग और ध्यान है। ध्यान की स्थिति को उजागर करने के लिए कायोत्सर्ग आवश्यक है। कायोत्सर्ग तनाव विलय का मार्ग है। जैन परम्परा में श्रावक के लिए सामायिक अनिवार्य है। सामायिक चित्त की समतामयी स्थिति है। सामायिक और ध्यान तनाव विसर्जन होने से ही प्रकट होते हैं। साधना की प्रक्रियाएं तनाव मुक्ति की प्रक्रियाएं हैं। विभिन्न धर्मों एवं व्यक्तियों ने अपनी-अपनी परम्परा के अनुरूप इनकी परिकल्पना की है। कुछ परम्पराएं तनाव मुक्ति के लिए
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