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प्रज्ञा की परिक्रमा शरीर की शक्ति का संवर्धन, दोषों का निरसन, और संतुलन बनाए रखना योगासन का उद्देश्य है।
प्राणायाम शक्ति-संचय, विष-निष्कासन, जीवन-रूपान्तरण का आधारभूत तत्त्व है।
कायोत्सर्ग तनाव-मुक्ति की सफल प्रक्रिया है। प्रेक्षा-ध्यान चैतन्य जागरण की प्रक्रिया है। जिससे शारीरिक, मानसिक और भावात्मक संतुलन उत्पन्न होता है। ___ अनुप्रेक्षा-स्वभाव परिवर्तन, व्यसन मुक्ति, सात्त्विक जीवन को विकसित करने की पद्धति है।
सत्संग व स्वाध्याय-अस्तित्व में ठहरने का संकल्प और पुनः अभ्यास। व्यावहारिक प्रशिक्षण-चलना, बैठना, सोना एवं पारस्परिक व्यवहार में सामंजस्य स्थापित करना।
उपरोक्त प्रक्रियाओं का स्पष्ट परिणाम पहले व्यक्ति, फिर परिवार और समाज पर उतरकर एक नया सृजन करता है। यह सब इसलिए घटित होता है कि इन प्रक्रियाओं से शरीर की कोशिकाएं स्वस्थ, शक्ति सम्पन्न होती हैं। श्वास-प्रश्वास के सम्यक् नियोजन से प्राणवायु अधिक मिलती है। दूषित वायु का रेचन पूरे परिणाम में होता है, जिससे रक्त-शुद्धि एवं उनकी गुणवत्ता का विकास होता है। मांसपेशियां व शरीर के अन्य अवयव स्वस्थ और शक्तिशाली बनने लगते हैं। प्रेक्षा-ध्यान आध्यात्मिक विकास का आधारभूत तत्त्व है, जिससे व्यक्ति में सहज करुणा और समता का विकास होने लगता है। एन०सी०ई०आर०टी० (राष्ट्रीय शैक्षणिक शोध एवं अनुसंधान परिषद) एवं अन्य शोध विभागों से संयुक्त वैज्ञानिकों की रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि प्रेक्षा-ध्यान जीवन को रूपांतरित करने की पद्धति है। ___ शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक विकास के इच्छुक हर एक व्यक्ति को इसमें शामिल होने का अधिकार है जिससे वे नए जीवन का प्रारंभ कर सकें।
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