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प्रज्ञा की परिक्रमा विकास संभव होता है। सामायिक के अनुष्ठान का विधिवत् प्रशिक्षण प्राप्त कर उसका प्रयोग करने से समता जीवन और व्यवहार में उतरने लगती है। सामायिक का यह प्रयोग केवल अध्यात्म के विकास का ही साधन नहीं है। इससे व्यवहार और व्यक्तित्व में भी रूपान्तर होता है । व्यवहार में आने वाले परिवर्तन से जीवन की दिशा ही परिवर्तित हो जाती है। सामायिक के इस अनुष्ठान से शारीरिक, मानसिक आध्यात्मिक स्वास्थ्य को उपलब्ध होकर चैतन्य की परम अवस्था मुक्ति को उपलब्ध हो सकते हैं। मुक्ति कोई पद अथवा स्थान नहीं। विषमता बन्धन लाती है, समता मुक्ति । मुक्ति चैतन्य का स्वरूप है, अवस्था है। वह समता से घटित होती है।
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