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________________ १२४ प्रज्ञा की परिक्रमा ___मानो, सामायिक का संकल्प घड़ी ने किया हो। प्रारम्भ में सम्भवतः सामायिक के अवतरण की विधियां ज्ञात थीं किन्तु वर्तमान में वे लुप्त प्रायः हो गई हैं। केवल संकल्प के सूत्र उपलब्ध हैं, जिनमें सामायिक के अनुष्ठान का विवरण है, किन्तु समता की विधि का कोई उल्लेख नहीं है। केवल विवरण को दुहराने से कोई परिणाम उपलब्ध नहीं हो सकता। विवरण और प्रयोग दो भिन्न दिशाएं हैं। विवरण से सूचना मिल सकती है। प्रयोग के बिना अनुभव नहीं किया जा सकता। प्रयोग जागरण का अवतरण करता है। अभिनव सामायिक अनुष्ठान प्रविधि प्रारम्भ में वन्दे अर्हम्, वन्दे सच्चं, वन्दे गुरुवरम् वन्दना आसन में करें। अभिनव सामायिक अनुष्ठान में संकल्प के पश्चात् चतुर्विशति (चौबीस तीर्थंकरों) का स्मरण कायोत्सर्ग की मुद्रा में किया जाता है। वर्तमान में मन, वाणी और काया को समता में प्रतिष्ठित करने के लिए "असिआउसा" दीर्घश्वास-प्रेक्षा और त्रिगुप्ति संयम का अभ्यास किया जाता है। प्रथम प्रयोग - कायोत्सर्ग के साथ समता की स्थिति को अधिक गहरी और गतिमान बनाने के लिए नमस्कार महामंत्र के प्रत्येक पद के आदि अक्षर "अ सि आ उ सा" का जप रूप में उपयोग किया गया है। जप का तात्पर्य "तदर्थभावनं जपः" समता के उस भाव को पुष्ट बनाने के लिए परमेष्ठी मंत्र से अधिक कौन श्रेष्ठ मंत्र हो सकता है ? पन्द्रह मिनट के इस जप अनुष्ठान को भी तीन भाग-पांच-पांच मिनट में विभाजित किया गया है। उच्चस्वर जप, मध्यम जप, उत्तम जप। उच्चस्वर जप पूर्ण उच्चारण लयबद्ध एवं शान्त स्वर में किया जाए। मध्यम जप केवल होठों में धीरे-धीरे स्मरण किया जाता है। उत्तम जप में जागरूक रहकर मानस जप किया जाए। दूसरा प्रयोग - चित्त को नाभि पर केन्द्रित कर दीर्घ-श्वास से होने वाले और पेट के सिकुड़ने और फैलने के स्पंदनों का अनुभव करे। तीन मिनट के बाद चित्त को दोनों नथुनों के भीतर सन्धि स्थल पर केन्द्रित कर, आते-जाते हुए श्वास-प्रश्वास की प्रेक्षा करें । दीर्घ-श्वास लयबद्ध लें । पहला, दूसरा, तीसरा सभी श्वास-प्रश्वास एक जितने ही हों । श्वास रोकने का प्रारम्भ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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