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प्रज्ञा की परिक्रमा
व्यसन मुक्ति और आदत परिवर्तन के लिए कायोत्सर्ग की अवस्था में छोटे-छोटे वाक्यों द्वारा तादात्म्य से मधुरता से सुझाव देकर किसी को व्यसन मुक्त बनाया जा सकता है
मैं व्यसन मुक्त हो गया हूं, नशीले पदार्थ विष युक्त होते हैं। मैं उनको अब नहीं पी सकता। नशीले पदार्थों में बड़ी तेज बदबू आ रही है। मैं अब व्यसन नहीं कर सकता। मैं व्यसन मुक्त हो गया हूं।
रसायन परिवर्तन से भाव परिवर्तन
ग्रन्थियों के स्राव (रसायन) परिवर्तन से भाव परिवर्तन होता है। भाव रसायन को प्रभावित करता है। रसायन जीवन व्यवहार को बदलता है । व्यवहार की पुनरावृत्तियां आदत बनती हैं। आदत से व्यक्ति आक्रान्त हो असह्य हो जाता है, चाहने पर भी इस आदत से मुक्त नहीं हो पाता। उसके वश की बात नहीं रहती है। रसायन परिवर्तन के लिए प्राचीन और नवीन पद्धतियों में औषध का उपयोग किया जा रहा है । औषध से ग्रन्थियों का स्राव परिवर्तन हो सकता है । किन्तु औषध सर्वसुलभ नहीं हो सकती। कुशल डॉक्टर के बिना उनका उपयोग खतरे से खाली नहीं रहता । मात्रा की न्यूनाधिकता मस्तिष्क और स्नायु तंतुओं को खतरे में डाल सकती है । औषध के सहगामी परिणाम भी भयावह हो सकते हैं ।
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भावना के द्वारा स्रावों (रसायनों) के परिवर्तन का भावों द्वारा रसायन परिवर्तन का मार्ग सरल और सर्वगम्य है। भावना के विविध प्रयोग और विविध उपयोग है । व्यक्ति के सर्वांगीण विकास, स्वभाव परिवर्तन के लिए भावना के प्रयोग अद्भुत हैं । भावना के प्रयोग के लिए स्थिर आसन में शरीर को शिथिल करने का अभ्यास सर्वप्रथम किया जाता है। शरीर की शिथिल स्थिति में श्वास को लयबद्ध बनाना होता है। लयबद्ध श्वास के सयम भावना की निश्चित शब्दावली का उपयोग किया जाता है। शरीर में विभिन्न भावनाओं की अभिव्यक्ति के स्थान है। उन पर ध्यान केन्द्रित कर भावना की शब्दावली के साथ ग्रन्थियों के स्रावों का परिवर्तन किया जाता है । ग्रन्थियों और उनके स्रावों को नियन्त्रण करने वाली उन प्रमुख ग्रन्थियों पर ध्यान केन्द्रित कर भावित किया जाता है। क्रोध, आवेग आदि वृत्तियों के लिए एड्रिनल, गोनाड्स के स्रावों का परिवर्तन करना आवश्यक है। दोनों ग्रन्थियों पर ध्यान केन्द्रित कर भावना के द्वारा स्रावों का सन्तुलन किया जाता है।
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