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स्वभाव परिवर्तन के प्रयोग
१२१ संतुलित ग्रन्थियों से उत्तेजित वृत्ति होने पर भी वे तत्काल प्रभावित नहीं होती। पिच्युटरी, पिनियल प्रमुख ग्रन्थि कहलाती हैं। भावनाओं को रूपान्तरित करने में भी इनका महत्वपूर्ण स्थान है। योग अथवा साधना में दर्शन केन्द्र, ज्योति केन्द्र के विकास पर बड़ा बल दिया गया है। दर्शन और ज्योति केन्द्र से स्रावों का सन्तुलन बनने लगता है जो व्यक्तित्व का विकास, स्वभाव परिवर्तन की आधारशिला है। भाव से विचार, चिन्तन, क्रिया सभी प्रभावित होते हैं।
भावना के प्रयोग के लिए बहुत अवकाश है। चिकित्सा, मनोविज्ञान, अध्यात्म के अतिरिक्त जीवन व्यवहार, स्वभाव परिवर्तन, विकास की विभिन्न शाखाओं में भावना का उपयोग किया जाता है। स्मृति, विकास, शिक्षा और शिक्षण में भी भावना का अधिक से अधिक उपयोग किया जाने लगा है। दैनन्दिन की समस्याओं का समाधान भी भावना प्रयोग से सम्भव है।
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