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________________ ११८ I प्रज्ञा की परिक्रमा पर पढ़ते हैं (पांच मिनट ) । सहिष्णुता के भाव को प्राणों में घुलने देते हैं विशुद्धि केन्द्र (कंठ) पर चित्त को एकाग्र किया जाता है । विशुद्धि केन्द्र पर चमकते हुए नीले रंग का ध्यान किया जाता है। अनुभव किया जाता है कि सहिष्णुता का भाव पुष्ट हो रहा है । सहिष्णुता के भावों को रोम-रोम में (प्राण-प्राण में) अनुभव करना होता है। (पांच मिनट ) सहिष्णुता का मन्त्र है 'अनन्त शक्ति ।' 'अनन्त शक्ति' मन्त्र को चमकते हुए अक्षरों में कंठ फुफ्फुस तक के स्थान पर देखना होता है। 'अनन्त शक्ति' मन्त्र का मानसिक जाप करते हुए सहिष्णुता को प्राणों में घुलने देते हैं। सहिष्णुता की तरह मुदिता, करुणा, मैत्री आदि की अनुप्रेक्षा भी की जा सकती है । ममत्व, अनुराग, प्रियजन की आकस्मिक मृत्यु से भी मन पर आघात पहुंचता है। कई बार आघात इतना गहरा होता है कि व्यक्ति का मानस विक्षिप्त सा हो जाता है। विक्षिप्तता को मिटाने के लिए, आसक्ति को तोड़ने के लिए अनित्य अनुप्रेक्षा उपयोगी होती है । प्राण का स्वभाव पर प्रभाव स्वभाव परिवर्तन में प्राण का महत्वपूर्ण स्थान है। शरीर में प्राण ऊर्जा ही एक ऐसी शक्ति है जो व्यक्ति के विकास और हास का कारण बनती है । कोई भी आदत प्राण शक्ति को प्राप्त किए बिना अधिक समय तक टिक नहीं सकती । प्राण शक्ति है, ऊर्जा है, उसका उपयोग जिस दिशा की ओर किया जाता है उस दिशा की ओर होने लगता है। स्वभाव परिवर्तन में प्राण ऊर्जा का दो तरह से उपयोग किया जा सकता (१) संकल्प द्वारा प्राण जागृत कर स्वयं में परिवर्तन | (२) प्राण की ऊर्जा को स्वयं में संग्रह कर दूसरे व्यक्तियों को शक्ति प्रदान करना । प्राण ऊर्जा ही व्यक्तित्व को जीवन्त बनाती है। ऊर्जा के चूकने से ही व्यक्ति निस्तेज बनता है। प्राण ऊर्जा को जागृत बनाए रखना ही तेजस्विता, कर्मशीलता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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