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________________ स्वभाव परिवर्तन के प्रयोग ११७ 'अभय का भाव पुष्ट हो रहा है, भय का भाव क्षीण हो रहा है। (नौ बार उच्चारण किया जाता है) स्वल्प समय पश्चात् मानसिक रूप से उच्चारित करते हुए अभय के भाव को पुष्ट करना होता है। 'अभय का भाव पुष्ट हो रहा है, भय का भाव क्षीण हो रहा है' इस वाक्य को चमकते हुए अक्षरों में धीरे-धीरे फेफड़ों पर पांच मिनट पढ़ना होता है। चित्त को आनन्द केन्द्र पर केन्द्रित किया जाता है, जहां दोनों पसलियां सामने मिलती हैं आनन्द केन्द्र पर चमकते हुए हरे रंग का ध्यान किया जाता है। (पांच मिनट) _ 'अभय' इस मन्त्र का कुछ देर तक उच्चारण करते हैं। चमकते हुए अक्षरों में कंठ से फुफ्फुस तक चित्त को फैलाकर 'अभय' मन्त्र का मानसिक जाप किया जाता है। (पांच मिनट) सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा परिवार, समाज, राष्ट्र आज क्यों परस्पर दूर हो रहे हैं ? उसके कारणों की खोज में जायें तो पायेंगे कि टूटन और क्लेश का कारण है असहिष्णुता। व्यक्ति में सहने की क्षमता कम होती जा रही है। छोटा बच्चा भी सहन नहीं कर सकता है। परिवार में एक दूसरे को सहे बिना सुखद जीवन जिया जा सकता है ? असहिष्णुता की प्रतिपक्ष भावना है सहिष्णुता । सहिष्णुता के विकास में व्यक्ति शान्त रह सकता है। शान्त रहने वाला ही सम्यक् अनुचिन्तन और सच्चा कर्म कर सकता है। सहिष्णुता के विकास और आवेग आदि परिस्थितियों के शमन की दृष्टि से सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा का अभ्यास किया जाता है। सहिष्णुता के विकास के साथ स्वयं व्यक्ति का जीवन और परिवार के सदस्यों के जीवन में सहने की क्षमता का विकास होता है। कायोत्सर्ग की मुद्रा में लेटकर अथवा बैठे-बैठे सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा का अभ्यास किया जाता है। सर्वप्रथम शरीर के प्रत्येक अवयव को 'शिथिलता के लिए सूचित किया जाता है। चित्त को कंठ से फुफ्फुस तक फैलाया जाता है। नीले रंग का श्वास लेते हुए अनुभव करते हैं कि नीले रंग के परमाणु भीतर प्रवेश कर रहे हैं। 'सहिष्णुता का भाव पुष्ट हो रहा है, मानसिक सन्तुलन बढ़ रहा है' (नौ बार उच्चारण) उपरोक्त वाक्य चकमते हुए नीले अक्षरों में धीरे-धीरे फुफ्फुस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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