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________________ १०४ प्रज्ञा की परिक्रमा डायाफ्राम पेट और सीने के हिस्से को पृथक् करता है। दीर्घ-श्वास में डायाफ्राम फैलता है जिससे श्वास-प्रश्वास की मात्रा बढ़ जाती है। दीर्घ-श्वास-प्रेक्षा से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक समस्याओं का समाधान होता है। शरीर व्याधि मन्दिर होता है। वह नाना व्याधियों से आक्रांत है। शरीर में जब व्याधि होती है तो मानसिक शान्ति रख पाना बहुत कठिन हो जाता है। मानसिक अशान्ति भावों में विकृति उत्पन्न करती है। भाव विकृति से व्यक्ति अधोगति की ओर अग्रसर होता है। विकृति जब बाहर निकलने की कोशिश करती है, उसे रोग की संज्ञा से अभिहित किया गया है। रोग अन्तर् के विकारों की अभिव्यक्ति है। दीर्घ-श्वास की दो क्रियाएं पूरक और रेचक हैं। "पुरकात् शक्ति संचयः।" 'रेचनात् व्याधि क्षयः।" पूरक से शक्ति का संचय होता है। रेचन से रोग का नाश होता है। पूरक और रेचक का सम्यक् दर्शन ही प्रेक्षा है। दीर्घ-श्वास के प्रयोग का लयबद्ध और समताल करना आवश्यक है। उससे ही शरीर में रही विकृति निरसन होती है। सर्वप्रथम शरीर को स्थिर, शिथिल करें। श्वास को गहरा और लम्बा करें अर्थात दीर्घ-श्वास-प्रश्वास करें। प्रत्येक श्वास के साथ यह भाव करें कि श्वास के साथ शक्ति अन्दर आ रही है, रोम-रोम में शक्ति विकसित हो रही है। स्वस्थता बढ़ रही है। रुग्णता क्षीण हो रही है। श्वास और प्रश्वास के साथ भावना करें। १० से १५ मिनट के इस प्रयोग से निराश, हताश ओर पीड़ित व्यक्ति भी प्राण और चैतन्य से भर जाता है। नव जीवन का संचार होने लगता है। दूसरा प्रयोग पूर्व दिशा की ओर मुख कर सुखासन में ठहरें। श्वास और प्रश्वास को दीर्घ और गहरा करें। पूर्व और उत्तर दिशा में विशेष क्षेत्र महाविदेह है। इस क्षेत्र में निरन्तर अर्हत् विराजते हैं । अर्हत् का तात्पर्य सर्व शक्तिशाली चेतना। इस क्षेत्र के सबसे निकट विराजित अर्हत् श्री सीमंधर स्वामी हैं। दीर्घ-श्वास भरते हुए यह भाव करें कि अनंत शक्ति संपन्न अर्हत् से प्राण-धारा श्वास के साथ रोम-रोम में भर रही है। प्रश्वास करें तब शक्ति अपने चारों ओर फैलकर जगत् को प्रभावित कर रही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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