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शक्ति जागरण की प्रक्रिया : श्वास-प्रेक्षा
श्वास जीवनी शक्ति
हमारा शरीर छोटे-छोटे असंख्य कोषों से बना है ? शारीरिक, मानसिक या अन्य कोई क्रिया जब करते हैं उससे ये कोष क्षीण होते हैं और टूटते हैं। क्षीण और टूटने की इस क्रिया से हमें थकान अथवा सुस्ती अनुभव होती है। इस टूट-फूट की पूर्ति श्वास, जल और भोजन से होती हैं। भोजन स्थूल है। पानी उससे सूक्ष्म है। श्वास दोनों से सूक्ष्म है। भोजन के बिना प्राणी कुछ महीनों तक जीवित रह सकता है। पानी के बिना कुछ दिनों तक, लेकिन श्वास के बिना कुछ क्षण तक जीवित रहना मुश्किल है। जीवन यात्रा के लिए श्वास-प्रश्वास अनिवार्य तत्त्व है। श्वास से जीवनी शक्ति को ग्रहण करते हैं। सामान्यतः प्राणी श्वास से बहुत स्वल्य या शुद्ध वायु ग्रहण करता है प्रश्वास से स्वल्य मात्रा में दूषित वायु बाहर निकालता है। श्वास और प्रश्वास की क्षमता व्यक्ति में बहुत अधिक है, किन्तु उसका पूरा उपयोग नहीं करता है। श्वास और प्रश्वास का समुचित उपयोग दीर्घ-श्वास-प्रेक्षा से किया जा सकता
है।
श्वास से जो ग्रहण किया जाता है वह केवल शुद्ध प्राणवायु अथवा ऑक्सीजन नहीं है। वायु के साथ अनेकानेक तत्त्व वायु में मिले हुए रहते हैं। श्वास के साथ वे फेफड़ों में भी जाते हैं, किन्तु फेफड़ों के कोष्ठकों की कुछ अपनी विशेषता हैं, वे शरीर के लिए आवश्यक वायु को ग्रहण कर अनावश्यक या दूषित वायु को प्रश्वास के द्वारा बाहर निकाल देते हैं। ग्रहीत वायु-प्राण शरीर में व्याप्त हो जाता है। नाड़ियों से विभिन्न अवयवों में कार्यरत हो जाता है। ऐतरेय ब्राह्मण के रचयिता ऋषि कहते हैं :
अपश्यं गोपाद्य मनिपद्यमानभा च परा च पथिमिश्चरन्तम् स सधीचीः स विषूचीर्वसा न आनरीवर्ति भुवनेष्वन्तः
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