________________
६८
प्रेक्षा-जागरूकता की प्रक्रिया भोजन के समय भावना का प्रयोग
भोजन में बैठने से पूर्व जांच करें कि कौन-सा स्वर चल रहा है। जहां तक हो सके चन्द्र स्वर (बायां) में भोजन न करें। चन्द्र स्वर चल रहा हो तो उसे संकल्प के द्वारा परिवर्तित कर सूर्य स्वर चलाएं। संकल्प बल से सूर्य स्वर नहीं चल रहा हो, तो चन्द्र स्वर को अंगूठे से बन्द करने से सूर्य स्वर प्रारम्भ हो जाता है। सात बार सूर्य स्वर से श्वास-प्रश्वास का अभ्यास करें। ___ अपने हाथों की अंगुलियों को भोजन से चार अंगुल ऊपर रख कर यह भाव करें अंगुलियों से सात्त्विक प्राण धारा निकल कर भोजन को शुद्ध और सात्त्विक बना रही है। यह भोजन शुद्ध और सात्त्विक है कोई मुमुक्षु मुनि आ जाए तो अपना भोजन उनको अर्पित कर दूं। मिताहार में मैत्री भावना के पश्चात् भाव-क्रिया से युक्त भोजन में मौन रखें। किसी प्रकार की प्रतिक्रिया न करें। शुद्ध और सात्त्विक भाव का भोजन केवल पाचक ही नहीं होता, वृत्तियों को रूपान्तरित करने वाला होता है यह अनुभव तथ्य है।
००००
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org