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प्रज्ञा की परिक्रमा सकता है। शरीर-प्रेक्षा, चैतन्य-केन्द्र-प्रेक्षा के समय उन स्थानों पर सलक्ष्य ध्यान करना होता है। जिससे पाचन-संस्थान के स्वास्थ्य को पाया जा सकता है। चौथा प्रयोग मंत्र ___ भारतीय ऋषियों की यथार्थ दृष्टि ने विभिन्न आयामों से गुजर कर सत्य के विराट् स्वरूप को स्वीकार किया है। उन्होंने जहां आसन, प्राणायाम, भावना, कायोत्सर्ग आदि के द्वारा स्वास्थ्य को प्राप्त करने के सुझाव दिए हैं। वैसे ही मंत्र की विधियां भी स्वास्थ्य प्राप्त करने में कारगर सिद्ध होती हैं। लीवर की वेदना से पीड़ित व्यक्ति ध्यान मंत्र और (हूं हूं) से पाचन तंत्र को प्रभावित करता है।
विभिन्न अवयवों के अलग-अलग मंत्र भी हैं। पारमार्थिक शिक्षण संस्था लाडनूं (राज०) की एक मुमुक्षु बहिन का लीवर खराब हो गया। उसे अनेक डॉक्टरों, वैद्यों एवं चिकित्सकों को दिखाया। कोई चिकित्सा नहीं हो सकी। वह निराश थी। उसको हूं का जप एवं ध्यान करवाया गया और तीन महीने के पश्चात् डॉक्टरों को दिखाया गया। वह स्वस्थ थी। पाचन-संस्थान पर सुझावों का प्रभाव
मंत्र की तरह भावना का भी प्रभाव पड़ता है। किसी अवयव को भावना से प्रभावित किया जा सकता है। स्वस्थ अवयव को भावना से और अधिक स्वस्थ बनाया जा सकता है। बीमार अवयव को भावना से स्वास्थ्य प्रदान किया जा सकता है। पाचन-संस्थान के अवयवों पर अलग-अलग ध्यान केन्द्रित करें। उन अवयवों को शिथिलता का सुझाव दें। शिथिलता का अनुभव करें। उसके पश्चात् उन अवयवों की प्रेक्षा करें। देखें वहां पर क्या क्रिया-प्रक्रिया हो रही है। दर्द है, जलन है या और कुछ हो रहा है। केवल उन स्थानों की प्रेक्षा करें। प्रेक्षा में शरीर-प्रेक्षा एक विधि है। उस विधि से पाचन-संस्थान के प्रत्येक अवयव की प्रेक्षा करें। उससे पाचन-संस्थान के दोष क्षीण होने लगते हैं। "पाचन-संस्थान के अवयव स्वस्थ हो रहे हैं।" मधुरता और स्नेह से स्वस्थ होने के सुझाव दें। काम ठीक करें। रसों का स्राव समान हों। आमाशय को आदेशात्मक सुझाव भी दिया जा सकता है। तुम पाचन कार्य ठीक करो।
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