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________________ ६७ प्रेक्षा-जागरूकता की प्रक्रिया छोड़ने का अभ्यास करना है। श्वास के समय पेट और नाभि का हिस्सा फूलता है, फैलता है। छोटा बच्चा श्वास-प्रश्वास करता है, तब उसका पेट सिकुड़ता और फैलता है। बच्चे को श्वास लेने का कोई शिक्षण नहीं दिया जाता बल्कि उसकी यह सहज क्रिया है। बड़े होने पर भय, चिन्ता, आवेग आदि से प्रभावित होने पर श्वास-प्रश्वास की क्रिया गलत होने लगती है। श्वास की चंचलता, श्वास-प्रश्वास का उल्टा क्रम जैसे श्वास लेते समय पेट का सिकुड़ना, छोड़ते समय पेट का फूलना । श्वास लेते समय श्वास-प्रश्वास की क्रिया का अभ्यास सम्यग करने से पाचनसंस्थान की कठिनाइयां स्वतः समाहित होने लगती हैं । श्वास-प्रश्वास सम्यग् करने से पाचन-संस्थान के विभिन्न अवयव सक्रिय बनते हैं। दिन में सामान्यतः व्यक्ति २२ हजार श्वास-प्रश्वास लेता है। श्वास-प्रश्वास की सम्यग् क्रिया से २२ हजार पाचन-संस्थान के अवयव सक्रिय बनते हैं जिससे उसमें रहा हुआ दोष शीघ्र दूर होकर शरीर स्वस्थ होने लगता है। दूसरा प्रयोग अग्निसार क्रिया पाचन-संस्थान को सक्रिय करने का दूसरा प्रयोग अग्निसार क्रिया है। अग्निसार क्रिया उड्डियान की स्थिति में कुंभक कर तीव्रता से पेट को गतिशील बनाया जाता है। एक बार कुंभक में २० बार पेट को गतिशील बनाए तो ५ बार में १०० बार हो जाता है। प्रतिदिन ५ बार करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है। अपच ठीक होने लगता है। पेठ की अन्य विकृतियों को शमन करने के लिए भी यह उपयोगी है। तीसरा प्रयोग स्वतः सूचना पाचन-संस्थान की क्रिया को ठीक करने के लिए तीसरा प्रयोग स्वतः सूचना है। पाचन तंत्र के किसी बीमार अवयव पर अंगुलिया रख स्वस्थता का सुझाव देकर स्वस्थता का अनुभव करें तो वह अवयव स्वस्थ होने लगता है। आमाश्य, पक्वाश्य, लीवर आदि जो भी स्वस्थ अनुभव न हो तो उस स्थान पर चित्त को एकाग्र कर स्वस्थता का सुझाव देना होता है। आसन, प्राणायाम और कायोत्सर्ग का शरीर पर प्रभाव होता है। यह निर्विवाद सत्य है। ध्यान के द्वारा भी पाचन-संस्थान को ठीक किया जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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