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________________ ६५ प्रेक्षा-जागरूकता की प्रक्रिया गया है। आसन और प्राणायाम से शरीर के विभिन्न अवयव लचीले, सौष्ठव, सुघड़ एवं सक्रिय बनते हैं। उससे ध्यान को धारण करने की क्षमता का विकास होता है। काय गुप्ति की साधना से ध्यान में प्रवेश सरलता से होता है। चित्त की निर्मलता तथा ध्यान के विकास के लिए शरीर की चंचलता का परिहार अनिवार्य है। चचलता तनाव से उत्पन्न होती है। तनाव मुक्ति की अचूक प्रक्रिया कायोत्सर्ग है। अस्वास्थ्य से भी तनाव उत्पन्न होने लगता है। तनाव विसर्जन से भी स्वयं स्वास्थ्य उपलब्ध होने लगता है। 'सव्व दुक्ख विमोक्खणं काउस्सगं समस्त दुःखों से विमुक्त करने वाला कायोत्सर्ग है। कायोत्सर्ग की उपयोगिता ___ शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक अस्वास्थ्य यथार्थ है ? किसी भी अवस्था में स्वास्थ्य की उपलब्धि के लिए कायोत्सर्ग उपयोगी है। कायोत्सर्ग सब दुःखों से विमुक्ति देने वाला है। कायोत्सर्ग ऐसी सरल और सहज प्रक्रिया है, जिसे किसी भी बीमारी की अवस्था में व्यक्ति कर सकता है। कायोत्सर्ग के दो अर्थ हैं-शरीर का शिथिलीकरण, चैतन्य का जागरण। शरीर के शिथिलीकरण और चैतन्य के जागरण को साधने के लिए शरीर को लेटने, बैठने और खड़े रहने की किसी भी विश्राम पूर्णस्थिति में ठहरा सकते हैं। श्वास को भरते हुए अंगड़ाई लेते समय शरीर को तनाव देते हैं उसी प्रकार तीन बार तनाव दें फिर शरीर को ढीला छोड़े दें। श्वास को मन्द और शान्त करें। चित्त को पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक प्रत्येक अवयव पर ले जाकर शिथिलता का सुझाव दें। शिथिलता का अनुभव करें। शरीर की शिथिलता के साथ चैतन्य का बोध प्रत्येक अंग और कोशिका में करें। इससे सम्पूर्ण शरीर में ठहरा हुआ विष विसर्जित होने लगता है। व्यक्ति स्वास्थ्य को उपलब्ध होने लगता है। किसी विशेष अवयव में तनाव हो उस अवयव पर चित्त एकाग्र कर वहां रहे हुए तनाव और विष-मुक्ति का सुझाव दें। "तनाव और विष विसर्जित हो रहा है। सुस्ती, अनिद्रा, तनाव, रक्तचाप, दर्द आदि अनेकों समस्याओं का समाधान कायोत्सर्ग करता है। त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) को सम करता है। कायोत्सर्ग कलियुग का संजीवन है। प्रेक्षा-ध्यान शिविरों में सैकड़ों-सैकड़ों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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