________________
६
प्रेक्षा जागरूकता की प्रक्रिया
प्रेक्षा जागरूकता की प्रक्रिया है। जागरूकता के कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) उपशान्त होने लगते हैं। कषाय के उपशमन से चित्त की निर्मलता बढ़ती है । प्रेक्षा ध्यान का उद्देश्य चित्त की निर्मलता, कषाय का उपशमन, जागरूकता । एक शब्द में अभिव्यक्ति देना चाहें तो स्वास्थ्य की उपलब्धि । स्वयं का साक्षात्कार अपने अस्तित्व में ठहरना है । स्वास्थ्य केवल अस्तित्व (चैतन्य) से ही संबंधित नहीं है । स्वास्थ्य मन का भी होता है। शरीर, मन और चैतन्य तीनों का स्वास्थ्य आवश्यक है । - प्रेक्षा- ध्यान से शारीरिक, मानसिक और आन्तरिक ( भावनात्मक) तीनों का स्वास्थ्य उपलब्ध होता है। प्रेक्षा- ध्यान जीवन-विज्ञान का प्रतीक है - 'स्वस्थे चित्ते बुद्धयः प्रस्फुरन्ति' स्वस्थ चित्त में बुद्धि स्फुरित होती है । स्वस्थता के बिना अस्तित्व (चैतन्य) पर आवरण आने लगता है। मन मलिन होता है। शरीर रुग्ण होता है । अस्तित्व के आवरण, मन की मलिनता, शरीर की रुग्णता को मिटाने का मार्ग प्रेक्षा है । प्रेक्षा के अनेक आयाम हैं। यौगिक शारीरिक क्रिया, आसन, प्राणायाम, कायोत्सर्ग, प्रेक्षा- ध्यान के विविध प्रयोग, अनुप्रेक्षा, स्वाध्याय इनसे शरीर की रुग्णता, मन की मलिनता, अस्तित्व के आवरण को अनावृत कर स्वास्थ्य को उपलब्ध किया जाता है। इस निबन्ध में प्रेक्षा से होने वाले स्वास्थ्य के प्रयोगों के परिणाम की कुछ चर्चा है ।
दीर्घ श्वास-प्रेक्षा एक रसायन है। शरीर, मन और चैतन्य को वह स्वस्थ बनाकर स्वरूप को अभिव्यक्त करता है ।
श्वास-प्रश्वास के बिना न मन जीवित रह सकता है न शरीर । चैतन्य और शरीर के बीच का सेतु श्वास है। श्वास-प्रश्वास का नियमन ही शक्ति को जागृत करता है। जागृत-शक्ति ही शरीर को बलिष्ट, मन को पुष्ट और इन्द्रियों को तेजस्वी बनाता है। शरीरबल, मनोबल और इन्द्रिबल की तेजस्विता का उपयोग किस दिशा की ओर किया जाता है, यह एक चिन्तनीय प्रश्न है ? शक्ति, शक्ति ही होती है। उसका उपयोग सृजनात्मक या विध्वंसात्मक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org