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________________ क्रोध शमन के प्रयोग - ६१ क्रोध शान्त हो रहा है। मन ही मन इसे दुहराए फिर शान्त भाव को अनुभव करें। समय तीन से पांच मिनट प्रातः संध्या अथवा रात्रि के किसी शान्त समय में कर सकते तीसरा प्रयोग कायोत्सर्ग में शान्ति की भावना तनाव ज्यों-ज्यों बढ़ता है व्यक्ति के स्वभाव में परिवर्तन आने लगता है। सहने की क्षमता कम होने लगती है। छोटी-छोटी घटना से उत्तेजित होने लगता है। स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है। मन के विपरीत किंचित भी हुआ वह आपे से बाहर हो जाता है। आवेश की बार-बार आवृत्ति से व्यक्ति अपने आप को संभाल नहीं पाता। क्रोध को उपशान्त करने की यह सरल प्रविधि है। रात्रि में सोने के लिए बिस्तर में लेट गए। श्वास को भरते हुए हाथों को कंधे की ओर ले जाकर तनाव दें। फिर हाथ शरीर के बराबर ले आएं । इस प्रकार तीन बार करें। शरीर को शिथिल छोड़ें। कहीं तनाव न रहें । शरीर की पकड़ को छोड़ें। आंखें मूंद लें। धीरे-धीरे श्वास लें, धीरे-धीरे प्रश्वास छोड़ें। प्रत्येक श्वास के साथ चित्त को केन्द्रित करें। मन में भाव करें कि श्वास के साथ शान्ति रोए-रोए में भर रही है। श्वास छोड़ें तो शान्ति चारों ओर कमरे में फैल रही है। जब तक नींद न आए श्वास के साथ भावना करें। इस प्रयोग के चार परिणाम हैं। १. नींद तत्काल एवं गहरी आती है। २. दुःस्वप्न, जंजाल दूर होते हैं। ३. स्वभाव परिवर्तन होने लगता है। ४. स्मृति का विकास। तीनों प्रयोगों का परिणाम एक महीने में स्पष्ट अनुभव होने लगता है। तीन से छ: महीने के अभ्यास से क्रोध के स्वभाव में परिवर्तन आने लगता है। प्रेक्षा-ध्यान शिविर में सैकड़ों व्यक्तियों द्वारा परिणाम की सत्यता के आधार पर कहा जा सकता है। क्रोध उपशान्ति के लिए ये तीनों सिद्ध प्रयोग हैं। ०००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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