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प्रज्ञा की परिक्रमा
पद्मासन, वज्रासन आदि किसी सुखपूर्वक बैठने वाले आसन में अभ्यास करें।
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दीर्घ श्वास- प्रेक्षा को प्रथम तीन माह तक प्रतिदिन १५ मिनट करें ।
दूसरी तिमाही में समवृत्ति- श्वास- प्रेक्षा (अनुलोम-विलोम प्राणायाम का प्रतिदिन १५ मिनट अभ्यास करें।
दूसरा
प्रयोग - ज्योति केन्द्र- प्रेक्षा
क्रोध उपशमन का दूसरा प्रयोग ज्योति - केन्द्र - प्रेक्षा है ।
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ज्योति - केन्द्र - प्रेक्षा भाव परिवर्तन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। ध्यान के अंत में ज्योति - केन्द्र - प्रेक्षा का अभ्यास प्रायः करवाया जाता है। ज्योति - केन्द्र ललाट के मध्य दर्शन-केन्द्र से लगभग दो-तीन अंगुल ऊपर है जिसे शरीर-विज्ञानी पिनियल ग्लैण्ड (पीयूष ग्रन्थि) कहते हैं । पीयूष ग्रन्थि पर ध्यान करने से आवेग उपशान्त होने लगता है। बालक के १० से १२ वर्ष तक यह ग्रन्थि सक्रिय रहती है जिससे काम आदि आवेगों के हार्मोन्स सक्रिय नहीं होते हैं। ज्योति - केन्द्र पर ध्यान करने से काम-क्रोध आदि आवेगों को उपशान्त होने में सहयोग मिलता है। ज्योति - केन्द्र पर श्वेत रंग अथवा आश्विन पूर्णिमा के चमकते हुए चांद की अवधारणा करते हैं। ज्योति केन्द्र- प्रेक्षा की प्रक्रिया
शरीर को शिथिल कर स्थिर करें । पद्मासन, वज्रासन आदि किसी सुख पूर्वक बैठने वाले आसन में ठहरें । स्वल्प समय प्रश्वास पर मन को केन्द्रित कर स्थिरता का अभ्यास करें । चित्त को ज्योति - केन्द्र पर केन्द्रित करें। जैसे टॉर्च के प्रकाश से अन्धेरे में दूर तक देखते हैं। वैसे ही चित्त को ज्योति - केन्द्र पर स्थापित कर वहां होने वाले स्पंदन, कंपन, हल्कापन, भारीपन, जो कुछ अनुभव होता हो उसे अनुभव करें। किसी को कुछ अनुभव स्पष्ट नहीं हो रहा हो वह अपने चित्त को वहां केन्द्रित रखें। श्वेत रंग की अवधारणा करें, श्वेत रंग का ध्यान करें । आश्विन के चमकते हुए चांद अथवा श्वेत बिन्दु का ध्यान करें ।
अनुभव करें आवेग शान्त हो रहा है ।
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