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प्रज्ञा की परिक्रमा रहा है। आखिर करें भी तो क्या करें। छोटे बच्चे से लेकर बड़ों तक का एक ही साल है। आवेश इतना अधिक हो गया कि शान्ति से जीवन व्यतीत करना ही महा दुष्कर हो गया है। बच्चों का मूढ़ __डेढ़ साल के बच्चे का मूढ़ बिगड़ जाता है तो उसे मनाना महा मुश्किल हो जाता है। वह अपनी जिद्द पर अड़ा रहता है। आवेश में आकर बर्तन तोड़ देता है, कपड़े फाड़ देता है, पुस्तकें फेंक देता है ? मां लाडले के सारे कारनामे जानती है किन्तु कोई उपाय नहीं। गृहिणियां बच्चों के मूढ़ से हैरान हैं। बच्चे थोड़े बड़े होते हैं उनका आक्रोश, आवेग इतना अधिक हो जाता है कि पूरे परिवार की शान्ति भंग हो जाती है। बच्चों का सवाल नहीं परिवार का प्रत्येक सदस्य-क्रोध की आग से जल रहा है। हर कोई एक दूसरे पर आरोप लगा रहा है कि मैं क्या करूं दूसरा ऐसा करता है तब मुझे भी आवेश आ ही जाता है। आवेश सभी को आता है। इस तरह अपने आप को बचाने की कोशिश करते हैं इसलिए आप करते हैं। इससे आप उसके परिणामों से बच नहीं सकते। क्रोध कोई करे अथवा अन्य प्रकार के आवेगों से अपने मानस को आन्दोलित करें। उसकी एक सूक्ष्म संस्कार रेखा चैतन्य पर पड़े बिना नहीं रह सकती? चैतन्य पर पड़ने वाली रेखाएं पुनः प्रगट होते समय क्रोध की सृष्टि करती है। जो वृत्तियों के रूप में उभर कर जीवन को प्रभावित करती हैं। क्रोध की बढ़ती हुई उस ज्वाला से परिवार, समाज और राष्ट्र का जन जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है।
राष्ट्र, समाज, परिवार की इकाई व्यक्ति है। व्यक्ति क्रोध से पीड़ित है तब परिवार, समाज और राष्ट्र कैसे स्वस्थ रह सकता है। क्रोध की समस्याओं से जीवन में जो तनाव, विवाद और विषाद बढ़ता जा रहा है। तनाव, विषाद और विवाद को मिटाने के अनेक उपाय हैं। तीन प्रयोग
१. दीर्घ-श्वास-प्रेक्षा २. ज्योति केन्द्र-प्रेक्षा ३. कायोत्सर्ग में शान्ति की भावना
पहला प्रयोग-दीर्घ-श्वास-प्रेक्षा क्रोध को शान्त करने का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। श्वास-प्रश्वास बिना प्राणी मात्र का जीवन टिक नहीं पाता।
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