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क्रोध शमन के प्रयोग
बर्तन के गिरने की तेज आवाज से, घर का पूरा वातावरण चीख से भर गया।
घर से लगी सड़क पर खलने वाली दुकान में बैठे, पिता, पुत्र चौंके। क्या हुआ ? किसी को चोट तो नहीं आई ?
"ना पिताजी कुछ भी नहीं हुआ। मां के हाथ से कोई बर्तन गिर गया, उसके टूटने की आवाज आई है।"
मूर्ख ! तुझे ब्रह्म ज्ञान हो गया ? यहां बैठे-बैठे गप्प मार दी कि मां के हाथ से बर्तन गिरा है। उसके टूटने की आवाज आई है ? तुम्हारी पत्नी नहीं तोड़ सकती ? उसके हाथ से बर्तन नहीं गिर सकता ? बिना समझे अपनी मां पर ऐसा आरोप लगाना उचित है ?
पिता जी ! आपका कहना उचित है। किसी पर झूठा आरोप नहीं लगाना चाहिए लेकिन मैं जो कह रहा हूं उसमें सच्चाई है। मां ही है दूसरा कोई नहीं। आप अन्दर जाकर जांच कर सकते हैं। पिता कुछ आवेश में आते हुए बोले। आज के छोकरों का दिमाग ही ऐसा हो गया। पत्नी करे सो अच्छा। दूसरा करे सो बुरा।।
"उन्हें होश ही नहीं रहता क्या कहना, क्या करना।"
पिताजी ने मनीम को अन्दर भेजा। पिता अवाक थे। यह कैसे हुआ? वे अपने चिन्तन में डूबे सोचने लगे। पुत्र ने समस्या का समाधान करते हुए कहा-पिताजी ! मैं पुनः कहता हूं यह बर्तन मां के हाथ से ही गिरा है। देखें घर में शान्ति छा गई है। कैसे ? अगर मेरी पत्नी के हाथ से गिरा होता तो बर्तन की आवाज तो बन्द हो जाती, किन्तु मां की टनटनाहट चलती रहती। मुनीमजी भी आ गये थे। पिता के बोलने के लिए कुछ नहीं था। माताजी क्रोध के बुखार में बिस्तर पर लेटी थी।
मां की टनटनाहट का प्रश्न नहीं। आज सम्पूर्ण मानव जाति आवेग से ग्रसित है। आवेग, प्रतिआवेग, तनाव, रुग्णता से मानव किंकर्तव्यविमूढ बन
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