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प्रज्ञा की परिक्रमा नहीं रहता, इससे स्पष्ट है हृदय मन नहीं है। हृदय और मन में स्पष्ट भिन्नता
___ मन चेतना की शक्ति से जुड़ा हुआ है। चेतना के मुख्य दो गुण है-ज्ञान और दर्शन, ज्ञान उसके अनुभव करने की शक्ति है और जानने की शक्ति है। दर्शन से उसका साक्षात किया जाता है अर्थात् ज्ञान के द्वारा वस्तु का साकार स्वरूप देखा जाता है। वहां दर्शन द्वारा समग्र वस्तु का अनुभव किया जाता है। चेतना (आत्मा) के ज्ञान का उपयोग मन द्वारा भी किया जाता है। इन्द्रिय आदि की विभिन्न प्रवृत्तियों में रसात्मकता पैदा करता है। मन शरीर का ऐसा कोई भौतिक अंग नहीं, किन्तु चेतना की वह शक्ति जो मनोवर्गणा के परमाणुओं को शरीर से ग्रहण कर मनोयोग द्वारा अपना कार्य करता है। इसलिए वह शरीर का अंग भी बन जाता है। मन, शरीर के चित्र भी लिए जाते हैं। इसलिए वह भौतिक भी हो जाता है। मन और शक्ति विचार ____ मन का स्थूल रूप विचार के रूप में अभिव्यक्त होता है। विचार मन का वह शक्तिशाली स्रोत है जिसके द्वारा वह जगत् को प्रभावित करता है। विचार की चंचलता ही जगत् और स्थिरता है ध्यान । विचार मन की अशब्द तरंग का नाम है। विचार जब भाषा का रूप धारण कर लेता है, तब वह शब्द बनता है। उच्चारित शब्द भाषा बन जाता है अर्थात् वाक् की प्रवृत्ति कहलाती
है।
___भाषा वाक् प्रवृत्ति का शब्द बनकर कर्ण द्वारा मस्तिष्क में जाकर पूरे चक्र को संचालित कर देती है। विचार की चंचलता विकल्प है। विचार की चंचलता का तात्पर्य है मन का विभिन्न विषयों पर बिखर जाना। विचारों पर विवेक का नियमन न होना ही विकल्प है। विकल्प का निरोध कर सद्विचारों को अवतरित करना संकल्प है। सद्विचार को निरन्तर एक रूप से अभिव्यक्ति देना संकल्प है। संकल्प की पवित्रता भावना पर निर्भर करती है। भावना और मन
भावना सद् असद् दोनों प्रकार की होती है। भावना से विचार प्रभावित होता है। विचारों को प्रभावित करने वाली सद्भावना से मन को परिष्कृत
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