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शान्ति की खोज
शान्ति की अभीप्सा हर व्यक्ति में है। वह शान्ति के लिए पुरुषार्थ करता है, किन्तु शान्ति कितनी उपलब्ध होती है, यह चिन्तनीय प्रश्न है। शान्ति की चाह उसमें है और आस-पास अशान्ति की प्रतिध्वनि-प्रतिध्वनित हो रही है तब शान्ति कैसे मिलगी ?
अशान्ति के निवारण के कारणों की खोज नहीं की जाती है तो शान्ति उपलब्ध कैसे हो सकेगी? शान्ति, ज्ञान, आनन्द, शक्ति, चैतन्य के मूल गुण है। अपने स्वरूप की ओर चित्त की यात्रा स्वयं प्रेरित करती रहती है। मन में उठने वाले संकल्प-विकल्प के कारण क्या हैं ? चंचलता मन में उत्पन्न हो रही है या कहीं ओर से उतर रही है ?
मन का स्वरूप
मन क्या है ? सीधा और छोटा-सा सवाल हजारों प्रश्नावली के बावजूद भी समाहित नहीं हो पाता है। पता नहीं मन की यह चलाकी है या उसके स्वरूप को समझने में कठिनाई है। मन दो अक्षर का नाम होते हुए भी स्वयं और सबको परेशान किये हुए है। मन की इस गुत्थी को सुलझाने के लिए मन के स्वरूप पर चिन्तन करना होगा! शरीर--विज्ञानी मन को (mind) मस्तिष्क के रूप में देखता है। मन यान्त्रिक प्रविधि का संयुक्त रूप है। मस्तक में होने वाली स्मृति, कल्पना और चिन्तन की सक्रियता मन कहलाती है। मन को मस्तिष्क का हिस्सा मानकर उसकी क्षमता को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। मन यदि मस्तिष्क का भाग हो तो क्या मन हृदयस्थ है, हृदय का हिस्सा है। हृदय रक्त संचार की क्रिया को सक्रिय बनाने वाला मांसल अंग है। जिसमें प्रतिक्षण संकोच-विकोच से रक्त का संचार संपूर्ण शरीर में होता है। रक्त परिसंचरण को सक्रिय करने में जहां हृदय का योग है वहां मन का भी उस पर प्रभाव पड़ता है। हृदय, मन की चिन्ता, प्रसन्नता एवं काम, क्रोधादि अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तन से प्रभावित हुए बिना
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