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प्रेक्षा-ध्यान और मनोविज्ञान
जगत् में मनुष्य एक विशिष्ट व्यक्तित्व है, उसे मन के द्वारा चिन्तन, स्मृति और कल्पना करने वाला तत्त्व मिला है। मन के द्वारा ही व्यक्ति अतीत की घटनाओं का संकलन करता है, वर्तमान में चिन्तन करता है और भविष्य में कल्पनाओं का तानाबाना सुनता है।
मन के द्वारा विलक्षण क्षमता वाली एक ऐसी शक्ति मनुष्य को उपलब्ध हुई जिससे ज्ञान, विज्ञान सारी की सारी विद्याएं विकसित हुई हैं। मन की अपनी विशिष्टता है। मन से ही व्यक्ति प्रिय–अप्रिय, सुख-दुःख, लाभ-अलाभ आदि संवेदनात्मक स्थितियों से गुजर कर नई-नई समस्याओं का सृजन करता है। मन तारक है, तो मन मारक भी है। मन नई-नई सृष्टि का सृजन कर मनुष्य को उन्नति के शिखर पर ले जाता है। वही मन विपरीत दिशा में चलकर अवनति का मार्ग दिखाता है। नाना संक्लेशों से स्वयं को पीड़ित बनाता है। मन सब कुछ होते हुए भी कुछ भी नहीं है। मन सारी सृष्टि का विस्तार है तो मन स्वयं में विलीन होते ही अस्तित्व का आधार बन जाता है। शास्त्रों में कहा गया है 'मनैव मनुष्याणां कारणंबन्ध मोक्षयोः' मन ही मनुष्यों के बन्धन और मोक्ष का कारण है। मन है क्या ? स्मृति, चिन्तन और कल्पना का संयुक्त यंत्र ? क्या वह केवल कम्प्यूटर मशीन है जो निश्चित स्थितियों से गुजरकर मनुष्य को चिन्ता में पहुंचाता है या चिन्ता मुक्त करता
है।
मन भौतिक और चैतसिक
मन दो स्थितियों से जुड़ा हुआ है। जहां तक स्मृति, चिन्तन और कल्पना का सवाल है यह यांत्रिक क्रिया है। मस्तिष्क के यंत्र में स्मृति का अंकन, चिन्तन की तरंगें और कल्पना के ग्राफ बनते हैं। उसे दोहराया जा सकता है।
मन चैतसिक शक्ति से संबंधित होने से वह अभौतिक है। वह स्मृति, चिन्तन और कल्पना को संचालित करता है। मन की यह शक्ति चेतना से
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