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________________ चढावनार पासेथी अमुक टेक्ष लेवानो धारस्टेटमा नियम हतो, ते नियमानुसार बदनावरना जैनमंदिर उपर कळश चढावनार पासेथी रु. ४००) चारसो अगाउ लेवामां आव्या हता, परन्तु गटुलालजी पोरवाडनी कार्यदक्षता अने कुनेहभरी कोशिषथी आ टेक्ष लेवानो नियम धारस्टेटे रद कयों हतो; अने बदनावरवाळाने रु. ४००) चारसो पाछा आपवानुं थयुं हतुं । ध्वजादंड अने कळश पर पूज्य पंन्यासप्रवरनं नाम अने प्रतिष्ठाना दिवस-वार विगेरेनो लेख लखवामां आव्यो छे । धार शहेरमा मालवी-श्रावको अने पोरवाड श्रावकोमा बावीस वर्षथी परस्पर क्लेश चालतो हतो ते पूज्यश्रीए धणी महेनत करीने बन्ने पक्षने समजावीने सम्प कराव्यो हतो, जेथी आ प्रतिष्ठाना दरेक कार्यमा बन्ने पक्षोए घणा ज उत्साहथी भाग लइने प्रतिष्ठाना प्रसंगने दीपाव्यो हतो । धारथी वै. सु. ९ ने रोज पूज्यश्रीए परिवार सहित विहार कर्यो, राजगढवाळा सुश्रावक केसरीमलजी पोताना कुटुम्ब सहित विहारमा साथे रह्या हता । बीजे दिवसे अमे बधा प्रतिष्ठाना प्रसंगने लइने कानवन पहोंच्या। वै. सु. १२ ने रोज भगवानने गादी पर विराजमान करवामां आव्या, अने तेनी बोलीना तथा ध्वजादंड अने कळश चढाववानी बोलीना रु. ५०५१) पांच हजार ने एकावननी देवद्रव्यादिभां उपज थइ । प्रतिष्ठाना प्रसंगमां श्रावकश्राविकानी हाजरी समयानुसार सारा प्रमाणमां थइ हती । आ प्रसंगे वे दिवसनी नवकारशी करवामां आवी हती। विहार करी पाछा धार आव्या त्यारे इन्दोर-श्रीसंघना माणसो चातुमासनी विनंति करवा आवी पहोंच्या, परन्तु मुम्बई जवानुं निश्चित थइ जवाथी तेमनी विनंति स्वीकाराइ नहि; तेथी तेओ निराश थहने पाछा इन्दोर गया । अमे धारथी विहार करीने नालछा थइने मांडवगढ तीर्थनी यात्राए गया । त्यांनी केटलीक प्राचीन जग्याओ जोइने यात्रा करीने घणो ज आनन्द अनुभव्यो । तथा एक वखतना भव्य जाहोजलालीवाळा मांडवगढनी आजनी आवी खंडियेरदशा जोइने मनुष्योनी चढती-पडती-दशा नजरोनजर जोइने कांइक संवेगदशामां वधारो थयो, अने " नीचैर्गच्छत्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण " ए कविनी उक्तिर्नु रहस्य अनुभवमां आव्युं । मांडवगढथी विहार करीने २॥ माइलनो घाट उतरी ४॥ माइलनो पंथ कापी तारापुर मुकामे पहोंच्या। तारापुरमां आवेला एक प्राचीन मन्दिरनी प्राचीनतान बारीकाइथी अवलोकन कर्यु, वर्तमानमां सवालाख दोढलाख रु. खरचतां पण नहि बांधी शकाय एवा सुन्दर लालपत्थरथी बांधवामां आवेला आ मन्दिरमा आवेला आ घुमटमांनी पुतलीयो अने कोतरणीनुं काम जोइने आबूजीन स्मरण थया विना रहेतुं नथी । मूर्ति विनाना आ मंदिरमांनो शिलालेख वाचतां वि. सं. १५५२ मां आ मन्दिरनी प्रतिष्ठा थयार्नु जणायुं । मन्दिरनी नजीकमां ज सूर्यकुंड आवेलो छे अने आसपासनी वृक्षराजीथी आ मन्दिरतुं स्थान कोई तीर्थस्थाननी माफक आनन्द अने शान्तिजनक होवार्नु जणायाथी पूज्यश्रीए विचार कर्यो के “आ तीर्थतुल्य मन्दिरनो जीर्णोद्धार करवानो प्रयत्न मारे अवश्य करवो ज जोइए" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003041
Book TitleSiddha Hemchandra Shabdanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagar Gani
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1948
Total Pages396
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size21 MB
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