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खम्भानुं चातुर्मास.
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वि. सं. १९९९.
स्व. श्रेष्ठि बुलाखीदास नानचंदनुं मकान के जे उपाश्रयरूपे हाल बपराय छे. नोंध :- योगोद्वहन - गणीपद - पन्न्यासपदारोपण - अष्टाहिका महोत्सव - शान्तिस्नात्र -- स्वामिवात्सल्या दि. बृहद्योगविधिनुं प्रकाशन अने भेट, उज्जैन मुकामै सामुदायिक - शाश्वत अराधन, अने शासन-प्रभावनाना कार्यो. देशविरति-धर्माराधक-समाज अने मालवा - नवपद - आराधक - समाजना संमेलनो धार- कानवननी प्रतिवादि पुनित लाभो. अने तारापुर, शीरपुर, धुळीआ, मालेगांव, नाशिकनी स्तुत्य -कार्यवाहिओ विगेरे । संचयकारप्रातःस्मरणीय पू. आगमोद्धारक- आचार्यदेवेश श्री आनन्दसागरसूरीश्वरना विद्वान्- शिष्यरत्नवैयाकरणकेसरि-सिद्धचक्राराधन - तीर्थोद्धारक - पू. पन्न्यासप्रवर-श्रीचन्द्र सागरजी - गणीन्द्र-चरणारविन्दचञ्चरीकःसुबोधसागरः । ज्यारे अमारो खम्भात शहरमां प्रवेश थयो त्यारे खम्भावना संघ तरफथी शासन प्रभावना वधे एवी रीतनी प्रवेश - महोत्सवनी सर्व प्रकारनी गोठवण करवामां आवी श्रीस्तम्भन तीर्थ हती । पूज्य पंन्यासजी महाराज - श्रीचन्द्रसागरजीए पोताना शिष्य(खम्भात ) ना स्व. शेठ प्रशिष्यादि १ पूज्य पंन्यासजी महाराज २ श्रीदेवेन्द्रसागरजी, ३ श्रीहीरबुलाखीदास नानच सागरजी, ४ श्रीज्ञानसागरजी, ५ मो हुं (श्री सुबोधसागरजी ), ६ श्री प्रवीन्दना मकानमां थयेलुं णसागरजी, ७ श्रीविक्रम सागरजी, ८ श्रीहिमांशुसागरजी, ९ श्रीदौलतसं. १९९९नुं चातुर्मास. सागरजी, १० श्रीअमूल्य सागरजी, ११ श्रीहेमेंद्रसागरजी, १२ श्रीचन्द्रकान्तसागरजी अने १३ श्रीचन्द्रप्रभसागरजी ए प्रमाणे ठाणा १३ सहित ज्यारे खम्भातमां वाजते गाजते प्रवेश कर्यो त्यारे संघमां अपूर्व आनन्द छवाइ गयो हतो | त्यार पछी सारो दिवस जोईने पूज्यश्रीए व्याख्यानमां श्रावक धर्मना ऐदम्पर्य सुधीना बोधने करावनार श्रीपंचाशकजी अने शासनप्रभावनाने द्रढीभूत - करावनार - श्रीकुमारपाल चरित्रनी शरुआत करी ।
खम्भावना चातुर्मासनी रजा आपवाना अवसरे पूज्य पंन्यासजीने आगमोद्धारक आचार्य - देवेशे जणाव्यं हतुं के “ क्षेत्रनी बरोबर अनुकूलता होय, अने योग्यता खम्भातना चातुर्मास - पामेला शिष्योनी योगोद्वहनने अनुकूल शारीरिक सम्पत्ति होय तो पद्वीमां थयेला शासन- घर थवाने लायक शिष्योने श्रीभगवतीजीना योगोद्वहन करावीने पद्वी हितवर्धक - कार्यों - समर्पण करजो. " पूज्य गुरुदेवनी उपरोक्त आज्ञाने अनुसरीने पूज्य पंन्यासजीए योग्यताने पामी चूकेला पोताना परमविनेय-मुनि-श्रीदेवेन्द्र
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