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सागरजीने अने मुनि-श्रीहीरसागरजीने शुभ-मुहूर्ते श्रीभगवतीजीना योगमा प्रवेश कराव्यो। योगोद्वहननी उत्कंठावाळा बीजा शिष्य-प्रशिष्योने पण आचारांग, सूयगडांग अने महानिशीथादि सूत्रोना योगमा प्रवेश कराव्यो । योगोद्वहन करतांने मार्गदर्शक थनारं पुस्तक 'बृहद्योग-विधि' जे अगाउ प्रगट थयेलं, परन्तु हालमां ते मळी शकतुं नहि होवाथी, अने छेल्लां वीसेक वर्षथी तपागच्छनी सामाचारीवाळां पंचमहाव्रतधारीयोनी संख्यामां घणो ज वधारो थतो जतो होवाथी, ते पुस्तकनी घणा मुनिवरो तरफथी थती मांगणीने सन्तोषवाने माटे ते पुस्तकनी द्वितीयावृत्ति प्रगट करीने; अत्रे समर्पण थनारी पद्वीने प्रसंगे दरेक साधु-साध्वीने भेट आपवान श्रीसंघना आगेवानो तरफथी नक्की करवामां आव्यु । ते ग्रन्थना सम्पादननुं कार्य पूज्य पंन्यासजीनी आज्ञाथी मुनिश्री देवेन्द्रसागरजीए करी आप्युं हतुं ।
खम्भात-श्री संघना अत्यन्त-आग्रहथी अने आगमोद्धारक- आचार्यदेवेशनी आज्ञाथी पूज्य खम्भातना चातु- पंन्यासजी-महाराज-श्रीचन्द्रसागरजी आदिठाणा १३ नुं चातुर्मास सिमां श्री संघने प्राप्त- खम्भातमां रंगे चंगे सम्पूर्ण थयुं, अने चातुर्मासमा खम्भातना श्रीसंघने थयेला सुंदर लाभो. नीचे जणावेला मुख्य लाभो थया१-श्रावकधर्मना संक्षेप-विस्तार अने ऐदम्पर्य भावोने जणावनार श्रीपंचाशकजीना अने सम्य
कत्व-मूल-बारव्रतोनी अखंडित-आराधना करनार तथा शासनप्रभावनाना पुनित-मार्गोनुं सेवन करनार कुमारपाल-राजाना चकित करनार वृत्तान्तने जणावनार श्रीकुमारपाल महा
काव्यना शंका समाधानपूर्वक श्रवण, मनन अने परिशीलन करवानो अनुपम अवसर मळ्यो। २-आगमानुसारिणि-सुधावाणीथी सिंचायेला ३०० भव्यात्माओए (श्रावक-श्राविकाओए)
श्रीनवकार-महामंत्रनी आराधना अने नवे दिवस उपधाननी टोळीनी जेम तेओने अपूर्व
भक्तिथी एकासणां करावीने श्रीसंघनी जूदी जूदी व्यक्तिओए स्वामिवात्सल्यनो लाभ लीधो । ३-आ आराधनानी समाप्तिमा काढवामां आवेला रथयात्राना वरघोडामां मुम्बईना श्रीगोडी
पार्श्वनाथना मन्दिरमांथी मंगावेला चांदीना पत्रा पर करावेला श्रीनवकार-महामंत्रना पट्टक विगेरे शासन-प्रभावक-सामग्रीओने जोइने अनेक-भव्यात्माओ अनुमोदनानो लाभ लइ शके एवा प्रकारनी वरघोडानी गोठवण करवामां आवेली होवाथी जैनशासननी थयेली
प्रभावनानो अपूर्व लाभ श्रीसंघने मळ्यो । ४-श्रीनवकार-महामंत्रनी आराधना करवावाळा दरेकने स्व० शेठ बुलाखीदास नानचन्दना
सुपुत्रो तरफथी जर्मन-सील्वरना वाटकानी, अने शा. रतिलाल बहेचरदास तथा झवेरी
दलपतभाई खुशालदास तरफथी रुपीयो, वाटकी अने श्रीफळनी लहाणी करवामां आवी हती। ५-मुनि श्रीज्ञानसागरजीए करेली १६ उपवासनी तपस्या निमित्ते आंगी-पूजा-रात्रिजागरण
अने प्रभावना करीने श्रीसंधे लाभ लीधो।
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