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कार्योमा तेओना तरफथी तथा ऊंझाना बीजा आगेवानो तरफथी लगभग रु. १५०००) पंदर हजारनो खर्च करवामां आव्यो। उपधान-करनाराओमां ५४ श्रावक-श्राविकाओने पूज्य-पंन्या. सजी महाराजश्रीना वरद हस्ते मालारोपण करवामां आव्युं तेनी उपजना रु. ४०००) चार हजारनी आवक देवद्रव्यमा थइ हती। अत्र श्री सि. हे. श. शासनना नामप्रकरणनी आनन्दबोधिनीनी रचनानुं काम पण चालतुं हतुं । ऊंझामां शासनहितवर्धक-कार्योनी समाप्ति थया बाद त्यांथी श्रीसंखेश्वर-पार्श्वनाथनी यात्राए
जवानी भावना थवाथी विहार करीने रस्ताना गामोमां एक एक दिवस रत्नत्रयीनी आराधना रहेतां चाणस्मे रोकातां अने बे दिवसनी स्थिरता करीने कम्बोइ तीर्थनी अने अंजन-शलाका- यात्राए पधार्या । त्यां चाणस्माथी आवेला संघ तरफथी पूजा प्रभावना दिना अगणित लाभो- अने स्वामिवात्सल्यनो लाभ लेवामां आव्यो हतो । त्यांथी विहार करीने
श्रीशंखेश्वर-पार्श्वनाथना जन्म कल्याणकना दिवसनी मुख्यताने अनुलक्षीने १ पूज्य पंन्यासजी, २ हुं (हीरसागरजी), ३ ज्ञानसागरजी, ४ विक्रमसागरजी, ५ हिमांशुसागरजी, ६ अमूल्यसागरजी; अने ७ चन्द्रकान्तसागरजीए मागशर वदि ९-१०-१९ना दिवसोमां अट्ठमनी तपस्या करीने रत्नत्रयीनी आराधना करी । पारणाना दिवसे अमदावादथी आवेला सुश्रावक मोहनलाल छोटालाल विगेरे वीसेक श्रावकोनी मंडळी तरफथी पूजा तथा स्वामिवात्सल्यनो लाभ लेवामां आव्यो हतो । त्यांथी विहार करीने आद्रियाणा गामे जवानुं थयु । त्यां पूज्य श्रीना सदु. पदेशथी श्रीवर्धमान तप आयंबील खातानी स्थापना करवामां आवी, अने तिथि-नोंधनी तथा छुटक आवक मळीने बार मासना खर्चनी सगवड कराववामां आवी । त्यांथी विहर करीने पोष सुदि ४ने रोज झींझुवाडे जवानुं थयुं अने ६ दिवस रोकाइने त्यां आचारांगसूत्रना प्रथम सूत्रनो उपदेश देवामां आव्यो। त्यार पछी पालीताणानगरमां पू० आगमोद्धारक आचार्यदेवेशना वरद हस्ते माह मासमां थनारा श्रीवर्धमान-जैनागम-मन्दिरनी प्रतिष्ठा, अंजनशलाका विगेरेना अनुपम महोत्सवमां भाग लेवा माटे प्रामानुग्राम विहार करी पालीताणामां अमारा वधा ठाणाए प्रवेश कर्यो. सो बसो वर्षमां पण नहि उजवाया होय एवा उत्साहथी पूज्यपाद आचार्यश्रीना उपदेशथी श्रावकोए पाणीनी माफक पैसो वापरीने ते प्रसंगो उजव्या। आ महोत्सवना प्रसंगनो लाभ अने साथे साथे तीर्थशिरोमणि-श्रीशंत्रुजय तीर्थनी यात्रानो पण लाभ मळतो होवाथी माळवा, मेवाड, मारवाड, दक्षिण, बंगाल, पंजाब, गुजरात, काठियावाड अने कच्छ विगेरे देशोना घणा मनुष्योनुं पालीताणामां आगमन थयुं । आ महोत्सवमा लाभ लेवा माटे आवेला अमदावाद, मुम्बई, सुरत अने जामनगर विगेरे मोटा मोटा शहेरना मुख्य मुख्य श्रावकोए आ महोत्सवना दरेक प्रसंगोमां अर्थात् अंजनशलाकामां, प्रतिष्ठामां, पंचकल्याणकना वरघोडामां स्वामिवात्सल्योमां, पूजाओमां अने प्रभावनाओमा पोतानी चपळ लक्ष्मीनो सद्व्यय करीने लक्ष्मीने अचळ बनाववाना हेतुरूप
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