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________________ दीक्षानी मंगळमय क्रिया करवामां आवी । बोरडी, अने गोलवड अने दवीयरना श्रीसंघे आ दीक्षामां तन-मन-अने धनथी लाभ लीधो. दीक्षितने पंन्यासजी महाराजे पोताना शिष्य बनावीने श्रीचन्द्रप्रभसागरजी नामथी विभूषित बनाव्या । त्यारपछी त्यांथी विहार करीने नवसारी पधारीने प्रतिष्ठानो पुनित-लाभ लीधो । नवसारीनी प्रतिष्ठा ऊपर पधारेला पंन्यासजी महाराजने सुरत पधारवानी विनंति सुरतना संघे नवसारीमां करी, अने सुरतना प्रवेशन मुहूर्त नकी करी गया। सुरतमा प्रवेश. त्यारपछी वे दिवस नवसारीमा रोकाइने पंन्यासजी महाराजे सपरिवार सुरत तरफ विहार कयों । चातुर्मास माटे पधारनारा पूज्य आचार्य महाराज वगेरेनो प्रवेशमहोस्सव जेवा ठाठमाठथी सुरतनो संघ करे छे तेवाज आडम्बरथी पूज्य पंन्यासजी महाराजनो प्रवेशमहोत्सव पण सुरतना श्रीसंघे फागण सुदि ५ने दिवसे को. १६ सांबेला अने विविध वाजींत्रोवाळा वरधोडामां अनेक जग्याए गहुँली अने मोतीना साथीआ विगेरेथी पूज्यश्रीने वधाववामां आव्या. मुख्य मुख्य स्थानोए फरीने वरघोडाने गोपीपुरामां नेमुभाईनी वाडीने उपाश्रये आवतां बराबर एक वाग्यो. कारण के सामैयानी शरुआत सगरामपुराथी थयेल तेथी पंन्यासजी महाराजे प्रथम त्यां जिनदेवना दर्शन करीने देशना संभळावी हती. छतां अहीं वाडीमां पण एक कलाक पर्यत 'औचित्येन प्रवृत्तस्य. 'नी शरुआतथी भावधर्मन आगमन, टकाव, वृद्धि अने उत्तरोत्तर-विशेष-फलदायक केम बने ते समजावनारी देशना आपी हती. प्रान्ते लाडुनी प्रभावना करवामां आवी हती। गोपीपुरामां बे दिवसनी स्थिरता करी व्याख्यान संभळावीने शान्तिस्नात्र होवाथी सातमने दिवसे वडाचौटाना संघना आग्रहथी वडाचौटे अने आठमने दिवसे छापरीया शेरीना संघना आग्रहथी बन्ने स्थळना उपाश्रयमा वाजतेगाजते पधारीने पूज्य पंन्यासजीए व्याख्यान संभळाव्यु हतुं. तेमज हरिपुरा-संघना आग्रहथी 'धर्मनी आवश्यकता' उपर एक जाहेर व्याख्यान पण आप्यु हतुं। पूज्य पंन्यासजी महाराजना उपदेशथी डाभलानिवासी शेठ सोमचन्द लालचन्दनी पेढी तरफथी आ सालनी सामुदायिक श्रीसिद्धचक्रनी आराधना पानसर तीर्थमां कराववानुं आमंत्रण श्रीसिद्धचक्र आराधक समाजने मळेलं होवाथी अने आमंत्रण आपनारना अत्यन्त आग्रहने लईने ते अवसरे पानसर पधारवानुं स्वीकारेलं होवाथी पंन्यासजी महाराजने सुरतमा रोकवानो श्री संघनो आग्रह होवा छतां तेओश्री विशेष रोकाई शक्या नहि । सुरतना धर्मप्रेमी झवेरी ठाकोरभाई मलजीना परिचय अने प्रयासथी थयेला जैनधर्मानुरागी क्षत्रियवंशभूषण श्रीयुत्जयकृष्णदास विगेरे क्षत्रिय भाईओना अत्यन्त आग्रहथी सुरतथी विहार करीने तेओनी मीलमा वाजते गाजते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003041
Book TitleSiddha Hemchandra Shabdanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagar Gani
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1948
Total Pages396
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size21 MB
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