________________
॥ मुंबाइनुं चातुर्मास ॥
वि० सं० १९९७. पायधुनी, श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जैन श्वे० मन्दिरनी पाछळना भागनो उपाश्रय, नोंध-श्री सिद्धक्षेत्र पालीताणाना चातुर्मासनी पूर्णाहुतिना पूनित प्रसंगोने पूर्वरंग तरीके जणावीने
मुंबाइ चातुर्मासनी संक्षिप्त नोंध शरु कराय छे. गणिपद-पंन्यासपदारोपण-समये माळवादि संघ आगमन, घोघा-भावननर थई श्री भोयणी-तीर्थे सामुदायिक-शाश्वत-आराधन, सि. हे० श. अवचूर्णि, सूत्रकृतांग, श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनना संशोधन-संपादनादि अने शासनहितवर्धक स्तुत्य प्रसंगो शरु कराय छे.
संचयकार
प्रातःस्मरणीय-पू. आगमोद्धारक--आचार्य-श्रीआनन्दसागरसूरीश्वरना विद्वाशिष्यरत्न-सिद्धचक्राराधन- तीर्थोद्धारक पू. पंन्यासप्रवर-श्रीचन्द्रसागरचञ्चरीक-पं. श्रीहीरसागरजी.
श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासननी तत्त्वप्रकाशिका उपर रचायेला आ अवचूर्णि-ग्रन्थने अने श्रीतत्त्वप्रकाशिका अने श्रीआनन्दबोधिनी-नामनी वृत्तिद्वय–सहित श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनना कारक पर्यन्तना प्रथम भागने बहार पाडतां ए कामनी शरुआतथी आज सुधीमां केटलो समय व्यतीत थयो अने मुइकेलीओ वेठीने पण शासनहितवर्धक कार्यों थयां ते बापतमा जरुर पूरतुं अत्रे जणाववामां आवे छे ।
वि. सं. १९८४ ना वैशाख वद ६ ना रोज गुरुदेव पूज्य पंन्यासप्रवरनी दीक्षा थई, त्यारपछी अढार वर्षना चातुर्मासना स्थळो अने ते दरेक चातुर्मासमां थयेला शासनहितवर्धककार्यों विगैरेनी नोंध जरूर पडती आपीने बाकीनी नोंध अन्यत्र आपवामां आवेल छ । ___ अवचूर्णि-ग्रन्थ, संपादन-संशोधन तथा श्रीसिद्धहेमचन्द्र-शब्दानुशासनना प्रथम विभागना संशोधन-सम्पादन अने श्रीआनन्दवोधिनी-वृत्तिनी रचना वगेरे कार्योनी शरुआत वि. सं. १९९७ मां करवामां आवेली ते दरेक कार्यो समाप्त करीने आजे वि. सं. २००१ मां आ अवचूर्णि-प्रन्थने अने ' श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् ' महान् ग्रन्थने ते ते संस्थाओ द्वारा बहार पाडी शक्या छीए एज आनन्दनो विषय छे । आ कार्यमां वीतेला लगभग पांच वर्षना गालामां पण आ कार्यना निमित्तनी आडमां कोईपण शासनहितवर्धक-कार्य करवामां पूज्यश्रीए
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org